Wednesday 17 December 2014

हवाई जहाज उड़ाने का NOC अपराधी को !


                                                                 आद. प्रधानमंत्री जी
                                                                        भारत सरकार
                                                                          नई दिल्ली
विषय : न्यूज़ चैनल के इनामी बदमाश मालिक को हवाई जहाज उड़ाने का NOC कैसे मिला !

महोदय,

इलेक्ट्रानिक मीडिया की चकाचौध से नए मंत्री खुद को अलग नहीं कर पा रहे हैं। इस चक्कर में वे ऐसे काम को अंजाम दे रहे है जो आने वाले समय में काफी खतरनाक साबित होने वाला है। प्रधानमंत्री जी आपको पता है कि पांच - सात बड़े चैनल को अगर अलग कर दिया जाए तो बाकी के चैनल के संचालन का मकसद सिर्फ एक है। मसलन चैनल की आड़ में मालिक का गोरखधंधा चलता रहे। अब देखिए एक चैनल का संचानल चिट फंड का गोरखधंधा संचालित करने वाला एक व्यक्ति कर रहा है। इसने चिट फंड का काम करने वालों को भी चैनल का पहचान पत्र दे रखा है। इसी पहचान पत्र की आड में तमाम गरीबों को लूटा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान एक व्यक्ति पटना एयरपोर्ट पर लाखों रूपये के साथ पकड़ा गया । पुलिस ने पूछताछ शुरू की तो पकडे गया आदमी चैनल की धौंस देने लगा, लेकिन पटना पुलिस ने उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया और पकड़ी गई रकम कोर्ट के सामने पेश कर दिया।
चैनल का संचालन करने वाले इसी आदमी के खिलाफ मध्यप्रदेश के ग्वालियर में धारा 420 यानि धोखाधड़ी का मामला दर्ज है। काफी तलाश के बाद भी जब पुलिस इसे गिरप्तार नहीं कर पाई तो वहां कि पुलिस ने चैनल के इस मालिक को भगोड़ा घोषित कर दिया। भगोडा घोषित करने के बाद भी जब ये पुलिस के हत्थे नहीं लगा तो वहां कि पुलिस ने इस पर ईनाम घोषित कर दिया। अब ये दो हजार रुपये का ईनामी बदमाश घोषित है। वैसे तो ग्वालियर पुलिस ने कई बार इसके घर और आफिस में इसकी गिरफ्तारी के लिए टीमें भेजी हैं, पर सच्चाई ये है कि पुलिस का ही इसे संरक्षण हासिल है। क्योंकि चैनल का मालिक खुलेआम विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है, पुलिस इसे वाकई गिरफ्तार करना चाहती तो कब का गिरफ्तार कर चुकी होती। बहरहाल कई राज्यों ने इसके गोरखधंधे को समझ लिया है और इसकी सहयोगी संस्थाओं के सभी आफिसों पर ताला लगवा दिया है।
प्रधानमंत्री जी, चैनल के संपादक को मालिक की तरफ से तरह - तरह के फरमान सुनाए जाते हैं। ऐसे में बेचारे मूर्ख और बीमार संपादक के सामने दो ही विकल्प होता है, पहला ये कि वो आंख मूंद कर मालिक के गोरखधंधे को अंजाम देता रहे, दूसरा काम करने से मना करके घर बैठ जाए। (नोट : घर बैठने पर तो संपादक की पत्नी ही जान निकाल देगी, क्योंकि ये कंपनी संपादक की पत्नी को मंहगी साड़ियों का गिफ्ट देकर उनकी आदत बिगाड़ चुके होते है। इसलिए परिवार वाले भी संपादक से कहीं ज्यादा मालिक का कहना मानते हैं) लिहाजा संपादक ऐसे मालिकों की उंगली के इशारे पर नाचता रहता है।
प्रधानमंत्री जी मुझे याद है लोकसभा चुनाव के बीच में ही इस मूर्ख संपादक ने चैनल ज्वाइन किया था। इसे कत्तई भरोसा नहीं था कि देश में आपके नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने वाली है। मीटिंग के दौरान ये सरेआम बीजेपी और खासकर आपके लिए आपत्तिजनक टिप्पणी किया करता था। इसे लग रहा था कि जोड़ तोड करके किसी तरह कांग्रेस की ही सरकार बनने वाली है, इसलिए कांग्रेस बीट रिपोर्टर के साथ तमाम कांग्रेस नेताओं के यहां चक्कर लगाया करता था। आफिस की मीटिंग मे दावा करता था कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में ज्यादातर वो बातें शामिल हैं जो उसने कांग्रेस नेताओं को बताई हैं। बहरहाल चुनाव के रिजल्ट के बाद इसका माथा ठनक गया।
बहरहाल मालिक ने एक दिन संपादक को चैंबर में बुलाया और साफ-साफ कह दिया कि मुझे दिल्ली में एक गोष्ठी करनी है और इसमें बीजेपी के सभी कद्दावर नेता और मंत्री की मौजूदगी जरूरी है। मूर्ख संपादक को मौका मिल गया, इसने झट से कहाकि बीजेपी के सांसद और मंत्री कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पैसे की डिमांड कर रहे हैं। जानकार तो यहां तक बता रहे हैं कि पांच मंत्री और आधा दर्जन सांसद के नाम पर लगभग 45 लाख रुपये इस संपादक ने कंपनी से वसूल भी लिया। ये अलग बात है कि सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की मौत हो जाने से ये कार्यक्रम नहीं हो पाया । खैर ये बातें पुरानी हो गई..
प्रधानमंत्री जी, अब मैं पत्र लिखने का मकसद साफ कर दूं। दरअसल अब चिट फंड कारोबारी चैनल का मालिक हवाई जहाज में उडने का दांव चल रहा है। इसके लिए उसने चैनल के संपादक समेत सभी कर्मचारियों को लगा रखा है और कहा है कि मुझे 15 दिन के भीतर नागरिक उड्डयन मंत्रालय से एनओसी और डीजीसीए से लाइसेंस चाहिए। बेचारे डाक्टर साहब आपके मंत्रिमंडल में नए नए मंत्री बने हैं। चर्चा है कि मूर्ख संपादक के दवाब में आ गए और उन्होंने आनन फानन में एनओसी की प्रक्रिया पूरी करा दी। वैसे सच तो वही लोग जानें, लेकिन कहा जा रहा है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कोई पैसा नहीं लिया, लेकिन जो लोग इस एनओसी में लगे हुए थे, वहां 25 लाख रुपये को लेकर जरूर मारामारी की खबर आ रही है।
प्रधानमंत्री जी नागरिक उड्डयन मंत्री जरूरत से ज्यादा शरीफ हैं, तमाम पत्रकारों को वो व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, अस्वस्थ पत्रकारों को निशुल्क इलाज तक देते रहे हैं। इसलिए सभी पत्रकारों की उन तक बहुत आसानी से पहुंच है। उनके सीधेपन का कुछ लोग नाजायज फायदा उठाने में लगे हैं। इसलिए इस एनओसी की एक बार फिर से समीक्षा की जानी चाहिए। देखा जाना चाहिए कि जिस व्यक्ति, संस्था, या समूह को ये एनओसी दी जा रही है वो आखिर हैं कौन ? उनके खिलाफ देश में कितनी जगह अपराध पंजीकृत है, इस व्यक्ति का गोरखधंधा और पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है ? प्रधानमंत्री जी मूर्ख संपादक तो कल को अलग हो जाएगा, लेकिन एक बार इसके चक्कर में कुछ भी गलत हो गया तो लोग सरकार को ही कटघरे में खड़ा करेंगे।
प्रधानमंत्री जी सूचना प्रसारण मंत्रालय को भी सख्त हिदायत देने की जरूरत है कि एक बार वो चैनल के मालिकों के बारे में गंभीरता से छानबीन करके पूरी रिपोर्ट इकट्ठा कर लें, ये भी देखे कि चैनल को किस पैसे से संचालिय किया जा रहा है। अभी के लिए इतना ही बाकी फिर ....


आभार 

आपका 
महेन्द्र

Tuesday 2 December 2014

पुलिस का भगोडा बना चैनल का डायरेक्टर !

ज मीडिया के लिए बड़ा दिन है, पहली बार ऐसा होगा कि किसी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक साथ शामिल हो रहे हैं। दरअसल इंडिया टीवी के खास कार्यक्रम "आप की अदालत" ने शानदार 21 साल पूरे किए है, इसी दिन को यादगार बनाने के लिए INDIA TV ने एक भव्य समारोह का आयोजन किया है। अब इस आयोजन में जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत केंद्र सरकार के एक दर्जन से ज्यादा मंत्री हिस्सा ले रहे हैं तो जाहिर है यहां मीडिया पर बात होगी, हो भी क्यों ना ! होनी ही चाहिए। कई बार सरकार की तरफ से मीडिया को नसीहत दी जाती है कि वो जिम्मेदार बने ! मुझे तो इसमें कोई बुराई नहीं लगती मीडिया को जिम्मेदार होना ही चाहिए।

पर बड़ा सवाल ये कि सूचना प्रसारण मंत्रालय की भी कोई जवाबदेही है या नहीं ? माननीय राष्ट्रपति जी और प्रधानमंत्री जी चूंकि आज की शाम मीडिया के बीच होंगे इसलिए एक सवाल करना चाहता हूं ? प्रधानमंत्री जी एक पत्रकार और प्रबंधन में सूचना प्रसारण मंत्रालय कितना भेद-भाव करता है ? क्या आपको इसकी जानकारी है? मैं जानता हूं कि आपको नहीं होगी, क्योंकि आपने इस मंत्रालय को गंभीरता से लिया ही नहीं। यही वजह है कि केंद्र कि ये पहली सरकार है जिसने सूचना प्रसारण मंत्रालय को फुल टाइम मंत्री तक नहीं दिया है।

आपको पता है एक पत्रकार जब प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो यानि पीआईबी की मान्यता लेने के लिए आवेदन करता है तो उसकी महीनों पुलिस जांच होती है। मसलन दिल्ली में जहां वो रहता है, उस थाने से पुलिस की रिपोर्ट ली जाती है, पत्रकार स्थाई रूप से जहां का निवासी है, वहां से पुलिस की रिपोर्ट मंगाई जाती है। मतलब एक कठिन प्रक्रिया से गुजरने के बाद पत्रकार को पीआईबी की मान्यता मिल पाती है, लेकिन प्रधानमंत्री जी चैनल का डायरेक्टर बनने के लिए आपका मंत्रालय आंख मूंद लेता है, सारे नियम कायदे कीमती गिफ्ट के नीचे दब कर दम तोड़ देते हैं। इस मामले की पूरी जांच हो तो कई ऐसे मामले खुलेंगे, लेकिन एक मसले की जानकारी मैं आपको देता हूं।

मध्यप्रदेश में आपकी ही पार्टी यानि बीजेपी की सरकार है। वहां ग्वालियर की पुलिस ने एक घपलेबाज को ईनामी बदमाश घोषित कर रखा है। यानि इसकी खोज खबर देने वाले  को पुलिस की ओर से 2000 रुपये का ईनाम दिया जाएगा। इस आदमी पर अन्य तमाम गंभीर धाराओं के अलावा धोखाधड़ी यानि 420 का अपराध भी पंजीकृत है। ये अलग बात  है कि एमपी की पुलिस इसे गिरफ्तार करना ही नहीं चाहती ? वरना वो अब तक गिरफ्तार कर चुकी होती। बहरहाल पुलिस से बचने और उस पर रौब गांठने के लिए इस ईनामी बदमाश ने किसी की सलाह पर दिल्ली में एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल खरीद लिया। अब ये पैसे और चैनल की आड़ में सरकार को फिरंगी की तरह नचा रहा है।

मोदी जी ! हैरानी की बात तो ये है कि जिस कांग्रेस को आप पानी पी-पी कर भ्रष्ट बताते रहे हैं, उस कांग्रेस की सरकार ने इस ईनामी बदमाश को चैनल का डायरेक्टर बनने नहीं दिया। फाइल सालों से इधर उधर घूमती रही, लेकिन किसी मनमोहन की सरकार में कोई इसे डायरेक्टर बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। पर आपकी यानि बीजेपी की सरकार बनते ही ये अपराधी - भगोड़ा एक राष्ट्रीय चैनल का डायरेक्टर बन गया। चैनल का डायरेक्टर बनने के पीछे क्या डील हुई ? ये तो जांच का विषय है, लेकिन कहा ये जा रहा है कि जिस शहर का ये रहने वाला है, पहले सूचना प्रसारण मंत्रालय जिस मंत्री के पास था वो भी उसी शहर के निवासी रहे है। वैसे हो सकता है कि मंत्री को पता भी न हो और नीचे के अफसरों ने पूरा खेल कर दिया हो।

बहरहाल ये तो जांच का विषय है, लेकिन जब सरकार के मंत्री मीडिया को जिम्मेदार बनने की नसीहत देते हैं, तब मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या मंत्रियों को शर्म नहीं आती ? मैं फिर आपको बताना चाहता हूं कि बहुत जरूरी है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को फुल टाइम मंत्री दिया जाए, जिससे कोई अपराधी, भगोडा अय्याश किसी राष्ट्रीय चैनल का डायरेक्टर ना बन पाए, उसकी सही जगह जहां उसे रहना चाहिए यानि जेलने का इंतजाम किया जाना चाहिए। मैं इंडिया टीवी के कार्यक्रम के सफल होने की कामना करता हूं, मुझे उम्मीद है कि ऐसे मसलों पर प्रधानमंत्री गंभीर होंगे।




    

Saturday 15 November 2014

पत्रकार हैं, रुकिए प्लीज ! खबर आपकी ...

हां अगर आप पत्रकार हैं या पत्रकार बनने जा रहे हैं तो फेसबुक का ये पेज आपके लिए ही है। दरअसल ये हमारी नई संस्था " मैं हूं ना वेलफेयर सोसाइटी " समाज सेवा के और कार्यों के साथ ही अपने पत्रकार मित्रों के लिए भी संवेदनशील है। आज महसूस किया जा रहा है कि शहरी एवं ग्रामीण अंचलों में वैतनिक और अवैतनिक पत्रकारों के साथ लगातार दिल्ली, लखनऊ के बड़े पत्रकारों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू की जाए, जिससे पत्रकारों को लाभ होगा। इसके लिए राज्य स्तर, जिला स्तर, तहसील स्तर, शहर और ब्लाक स्तर पर पत्रकारों के लिए प्रशिक्षण और कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। इस पेज का  लिंक  ( https://www.facebook.com/profile.php? id=100006311055350 ) है। 

पत्रकार साथी अन्यथा नहीं लेगें, पर राज्य और जिला स्तर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया की कार्यशाला लगाना हम बेहद जरूरी मानते है। कोशिश होगी कि इस कार्यशाला में इलेक्ट्रानिक  मीडिया के बड़े संस्थानों के संपादक और वरिष्ठ पत्रकारों को कार्यशाला में शामिल किया जाए, इस कार्यशाला के जरिए कोशिश होगी कि पत्रकारों में संवेदनशीलता के साथ ही उन्हें समाज के प्रति और जिम्मेदार तथा जवाबदेह बनाया जाए, जिससे लोकतंत्र का ये चौथा स्तंभ ज्यादा मजबूत हो। पत्रकारों की इच्छा होती है कि उन्हें युद्ध, नक्सली हिंसा, साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान रिपोर्टिंग की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी मिले। इसके लिए विशेषज्ञ पत्रकारों के जरिए युद्ध, हिंसा, नक्सली हिंसा, सांप्रदायिक हिंसा के दौरान रिपोर्टिंग में बरती जाने वाली सावधानियों पर पत्रकारों को विशेष जानकारी देने की कोशिश की जाएगी।

अक्सर देखा गया है कि पत्रकार बनने के लिए राज्य के विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों जहां पत्रकारिता के पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं, बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं प्रवेश लेते हैं, लेकिन उन्हें यहां सिर्फ किताबी ज्ञान ही मिलता है। ऐसे में जब वो पत्रकारिता में आते हैं तो काफी परेशानी होती है। इंटर्नशिप के दौरान कुछ ही बच्चों को अच्छे मीडिया संस्थान में अवसर मिल पाता है, इसलिए बाकी बच्चे पिछड़ जाते हैं। इसके लिए कोशिश होगी कि विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में खास कार्यशाला का आयोजन कर उन्हें व्यवहारिक पत्रकारिता के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाए।

आखिर में पत्रकारों से संबंधित एक बात और .... जिला, तहसील, ब्लाक स्तर के पत्रकारों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए ठोस प्रयास किया जाएगा। किसी तरह की दुर्घटना में घायल पत्रकारों की सहायता करने के मकसद से जरूरतमंद पत्रकारों को दुर्घटना बीमा की सुविधा मुहैया कराई जाएगी।



नोट : यदि आप पत्रकार हैं, पत्रकारिता का कोर्स कर रहे हैं या फिर पत्रकारिता में किसी तरह की रुचि रखते हैं और आपके  पास कोई सुझाव है तो आप यहां शामिल कर सकते हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम आपके सुझाओं पर आगे बढ़ सकें। 


Tuesday 22 July 2014

मूर्ख संपादक : ये पब्लिक है, सब जानती है !

कल में अकल की बहुत जरूरत होती है, शायद ये बात इस मूर्ख संपादक को नहीं पता है, यही वजह है कि हर बार नकल के चक्कर में मारा जाता है। अब देखिए पहले ये न्यूज 24  के पूर्व मैनेजिंग एडिटर की एंकरिंग की नकल करने के चक्कर में अपने ही एंकर और रिपोर्टर से आँन एयर उलझ गया, बेचारे एंकर और रिपोर्टर ने किसी तरह अपनी और चैनल की इज्जत बचाई ! इस दौरान न्यूज रूम में मौजूद एक गेस्ट पत्रकार ने तो संपादक के व्यवहार पर आँन एयर आपत्ति भी की, लेकिन कहते हैं ना कि नंगों पर किसी बात का कोई असर नहीं होता।

अब नकल का दूसरा किस्सा : दूसरा किस्सा मुजफ्फरनगर दंगो से जुडा है। मुजफ्फरनगर में 2013 के दंगों में खुशी की पूंजी गंवा बैठीं बेघर औरतों को फिर से बसाने के लिए यहां शाहपुर के दंगा राहत शिविर में सामूहिक निकाह कराए गए। दंगों और दंगा पीडितों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए यूपी की सरकार ने सामूहिक शादी में निकाह करने वालीं दुल्हनों को एक-एक लाख का चेक दिया। सरकार की इस पहल का सभी ने स्वागत किया। जमीयत उल हिंद ने भी दुल्हनों को गृहस्थी संवारने के लिए 10 हज़ार रूपए के घरेलू सामानों का तोहफा दिया।

अब शाहपुर की ही तर्ज पर बाकी दंगा पीड़ित कैंपो में भी सामूहिक निकाह होने लगे। मगर आत्मा को भीतर तक झकझोर देने वाली एक हकीकत ये है कि ज्यादातर निकाह-दो रूहों का रिश्ता नहीं बल्कि एक लाख के चेक का सौदा बन कर रह गया। कहा जा रहा है कि सरकार से रकम ऐंठने के चक्कर में तमाम लड़कियों को बहला - फुसला कर उनका निकाह कराया जा रहा है, चेक  मिलते ही ये शादी टूट जा रही है। कुल मिलाकर ये कहूं कि ये शादी नहीं बस एक लाख रुपये हथियाने का हथियार भर बन गया है,  इससे तमाम लड़कियों की मुश्किल और बढ़ गई है।

मूर्ख संपादक की करतूत : IBN 7 न्यूज चैनल ने 4 जुलाई को ही स्पेशल रिपोर्ट के तहत आधे घंटे की ये खास स्टोरी चलाई। अब इसी स्पेशल  रिपोर्ट की  नकल कर रहा है ये मूर्ख संपादक !  मैने कहा ना कि नकल में अकल की बहुत जरूरत है, अब इसके पास अकल हो तब ना। ये दिमाग से इतना दिवालिया हो चुका है कि जिस नाम " दंगों की दुल्हन " से स्टोरी IBN 7 ने चलाई, ये नाम भी नहीं बदल पाया और उसी नाम से स्टोरी चला रहा है। मूर्ख इसे EXCLUSIVE बता रहा है। सच में मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि टीवी चैनल का ये मूर्ख संपादक किसे बेवकूफ बना रहा है। पब्लिक को तो बना नहीं सकता, क्योंकि " ये पब्लिक है, सब जानती है " जाहिर है चैनल के मालिक को ही मूर्ख समझ रहा होगा ? तभी तो उन्हें लगातार बता रहा है कि ये स्टोरी जरूर देखिए, यहां तक की मालिकों के दाएं बाएं रहने वाले लोग स्टूडियो में बैठकर खबर देख रहे हैं ! मैं चाहता हूं कि पहले आप YOUTUBE पर इस लिंक को देंखें, फिर मूर्ख संपादक की  अकल के बारे में अपनी  राय बनाएं कि क्या नकल ऐसे की जाती है ?

https://www.youtube.com/watch?v=ZJRCkX4j2Hk





Tuesday 24 June 2014

टीवी चैनल संपादक की काली करतूत !

मैं आठ साल तक राष्ट्रीय चैनल  IBN 7  से जुड़ा रहा हूं। इस दौरान चैनल ने तमाम बड़े- बड़े आयोजन किए । इन आयोजनों में केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, विभिन्न राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय नेता , सांसद, विधायक शामिल होते रहे हैं। मैने कभी नहीं सुना कि किसी कार्यक्रम में अतिथि बनने या फिर शामिल होने के लिए  किसी ने पैसे की मांग की हो। जब  भी नेताओं के पास निमंत्रण पत्र गया, नेताओं ने अपने सहायक से महज इतनी जानकारी की कि उस तारीख को पहले से कोई कार्यक्रम तय तो नहीं है, अगर तय होता है तो राजनेताओं ने कार्यक्रम के कामयाब होने की शुभकामना दी और कहाकि पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम में व्यस्त  होने की वजह से वो  कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकते। लेकिन अब दिल्ली में नई सरकार बनने के बाद एक विचित्र बात सुनी जा रही है। ये बात बताऊंगा, लेकिन पहले चैनल, चैनल  के मालिक और चैनल के संपादक के बारे में चर्चा करता हूं, फिर बताता हूं कि कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मंत्री और सांसद के रेट क्या हैं  ?

एक चैनल के मालिकान दिल्ली में आयोजन करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि इस आयोजन में केंद्र सरकार के बड़े से बड़े मंत्री, सांसद और सत्ता में उच्च पदों पर आसीन नौकरशाह के अलावा विभिन्न जांच एजेंसियों के अफसर भी शामिल  हों। दरअसल चैनल के मालिकों के दिन कुछ खराब चल रहे हैं। वैसे तो पैसे वाले हैं, पर कारोबार में नंबर दो का  माल ज्यादा है। मालिकों के साथ कई मीटिंग  में मैं शामिल  रहा हूं, बहुत ऊंची -ऊंची बातें करते हैं,  चैनल के लिए जिस चीज की मांग हुई तत्काल पूरा करने को कह दिया जाता है । हैरानी तब हुई जब एक रात 11.30 बजे शुरू होकर सुबह पांच बजे खत्म हुई मीटिंग में   चैनल  के विस्तार पर करीब हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी गई । लेकिन हकीकत ये है कि तीन महीने बीत जाने के बाद 10 करोड़ भी खर्च नहीं किया गया। बहरहाल  मीडिया के मुंगेरीलाल ने ऐसा हसीन सपना दिखाया कि हम सब  चैनल को लेकर हवा  में उडने लगे , लेकिन मालिक का एजेंडा साफ है। चैनल उनकी  प्राथमिकता  में ही नहीं है,, चैनल  की आड में  दो नंबर का कारोबार फलता फूलता रहे,  बस चैनल हो , मैग्जीन हो या फिर अखबार सब का  मकसद सिर्फ इतना ही है।

अब यहां पहले जितने भी संपादक रहे, उनकी माडिया में एक पहचान रही है, ये नाम जितना देश में जाने जाते है,  उतना ही विदेशों में भी लोग जानते हैं।  पर जैसे ही इन संपादकों ने मालिक का असली चेहरा देखा वो चुपचाप यहां से खिसक गए।  लेकिन इस संपादक की बात ही निराली है। पता चला है कि एक बार यहां से निकाले जा चुके हैं। निकाले जाने की वजह जानकर तो मैं भी सन्न रह गया। दरअसल दो नंबर का पैसे को ठिकाने लगाया जाना था, काफी मात्रा में पैसा था, लिहाजा मालिक ने कुछ करोड़ रुपये माननीय संपादक के घर रखवा दिया। लेकिन जब पैसा संपादक के घर से वापस आया तो ये पैसा काफी  हलका हो चुका था। इससे मालिक की नजर में इस संपादक पर टेढ़ी हो गई और कुछ दिन बाद इनकी छुट्टी भी कर दी गई। चैनल से बाहर होने के बाद भी मालिक और उनके परिवार से चिपके रहे। चैनल के मालिक के यहां बर्थडे पार्टी भी हो, तो बेचारे संपादक कोट पहन कर पहुंच जाते , कोट का जिक्र इसलिए कि उन्हें लगता है कि कोट पहनने से वो पढ़े लिखे दिखते हैं। हाहाहा.. पर बेचारे की गलत फहमी है।

बहरहाल यहां से निकाले जाने के बाद इस संपादक को एक दो जगह कुर्सी मिली पर वहां के मालिक भी महीने भर से ज्यादा इन्हें बर्दास्त नहीं कर पाए। इस बीच संपादक की पत्नी  ने चैनल की मालकिन से दोस्ती कर ली और फोन पर गपबाजी करने लगी। वैसे संपादक की पत्नी का लगातार फोन करना चैनल की मालकिन को अच्छा नहीं लगता था। एक दो बार तो ऐसा भी हुआ कि हम सब मीटिंग में थे और इनका फोन आ गया, मालकिन ने बहुत गंदा सा मुंह बनाया, फिर चपरासी को फोन थमाकर कहा ... बाहर जाकर बता दो कि मैं बिजी हूं। खैर ये उनका अपना मामला है, लेकिन सच ये है कि दुबारा नौकरी दिलाने में संपादक की पत्नी का बड़ा हाथ रहा, क्योंकि उन्होंने ही सौदे की डील की। सब को पता है कि बेचारे  संपादक  के पास  कोई नौकरी नहीं थी, पहले एक बड़े ब्रांड में थे,  तो दो चार नेता इसका नाम जानते थे। वहां से निकाले गए तो सड़क पर ही आ गए। अब कोई दो पैसे को नहीं पूछ  रहा।  इस बीच सड़क पर घूम रहे संपादक ने देखा कि मालिक  की भी फंसी हुई है.  लिहाजा इस समय तो  मालिक को दल्ला टाइप संपादक की जरूरत होगी, जो केंद्र की सरकार में घुसपैठ कर दो नंबर के धंधे को जारी रखने में मददगार साबित हो सके। फिर क्या था, दोनो हाथ जोड़े पहुंच गए मालिक के दरवाजे पर ..।    इसने  चैनल के मालिकों  को भरोसा दिलाया  कि  वो सत्ता के गलियारे के सबसे बड़े फिक्सर हैं, कोई भी मंत्री, पार्टी नेता  उनके  उंगली के इशारे पर नाचता हुआ उनके पास चला आएगा।

मालिक को लगा कि नई - नई सरकार बनी है, क्यों ना एक छोटा सा आयोजन रख मंत्रियों को यहां बुलाया जाए । थोड़ा मंत्रियों के साथ खाना  " पीना " हो जाएगा,  जिससे मुश्किल में मंत्रियों का सहारा मिल सके। फिर चैनल  मालिक को लगा कि लगे हाथ अपने फिक्सर संपादक की औकात भी पता  चल जाएगी। बस फिर क्या ! जून महीने की तारीख तय कर ली गई, संपादक को कहा गया कि अब वो बीजेपी के सांसद और मंत्रियों का जुगाड़ करें।  ये तो संपादक के लिए  सिर मुड़ाते  ही ओले पड़ने वाली बात हो गई । अब दिल्ली के सियासी गलियारे की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है, साफ सुथरे छवि वाले लोग मंत्री बन चुके हैं।   पहले तो इस बिगडैल संपादक ने खुद कोशिश की कि किसी मंत्री से मिलने का समय मिल जाए, लेकिन समय मिलना तो दूर इसका फोन भी किसी ने नहीं उठाया । हालत ये हुई कि इस संपादक ने एक  नामचीन पत्रकार के नाम को भुनाने की कोशिश की, लेकिन ये दांव भी नहीं चला। केबिनेट मंत्री तो दूर किसी राज्यमंत्री ने भी इसे मिलने का समय नहीं दिया। एक मंत्री ने संपादक को दो घंटे तक बाहर बैठाए रखा, फिर भी मिलने से इनकार कर कहाकि उसके पास समय नहीं है । बेचारे संपादक बेआबरू होकर किसी तरह आफिस आए, यहां अपने रिपोर्टरों से ही मुंह छिपाते फिर रहे थे।

संपादक ने सबसे घटिया खेल अब शुरू किया। उसने मालिक से कहाकि " देखिए राजनीति में बहुत गिरावट आ गई है, अब ये कमीने मंत्री और नेता किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पैसे की मांग कर रहे हैं। अब मालिक की तो फंसी हुई है, उसे तो पूरा कारोबार मैनेज करना है, इसलिए तुरंत कह दिया है, हां क्यों नहीं ! अगर कार्यक्रम में आने के लिए पैसा मांगते हैं तो कोई बात नहीं,  उन्हें बुलाइये, हम तो जाते समय भी उनकी बिदाई पैसों से करने को तैयार हैं। पता है संपादक  ने क्या रेट बताया ?  सांसद 10 लाख, राज्यमंत्री 15 लाख और केबिनेट मंत्री  20 लाख । मालिक ने पूछा कि पैसे लेने के बाद कार्यक्रम में आएंगे ही, इसकी गारंटी क्या है ? संपादक ने साफ कर दिया कि इसकी कोई गारंटी नहीं है, हमें तो बस  उनकी  बातों पर भरोसा ही करना होगा। अब मालिक क्या करे, उसके लिए तो एक तरफ कुआं और दूसरी ओर खाई है। इस संपादक से दुश्मनी भी नहीं ले सकता, क्योंकि ये सिर्फ संपादक नहीं बल्कि उसका पार्टनर कहें तो गलत नहीं होगा,  क्योंकि संपादक नंबर दो का पैसा कई बार अपने चैंबर में मंगाता है और यहीं इस रकम कि  गिनती वगैरह होती है।  अब देखिए ना संपादक की चाल... आयोजन तो हुआ नहीं, लेकिन  चैनल का मालिक लगभग 50 लाख रुपये से हलका हो गया। बताया गया कि पांच मंत्री  को  पैसा पहुंचाया  जा चुका था... हाहाहाहा पहली पारी में ये संपादक मालिक को मोटा चूना लगा चुका है, एक बार फिर लूटने का पुख्ता इंतजाम कर चुका है। सवाल ये है कि क्या इसीलिए इस संपादक  का ध्यान खबरों के बजाएं  " मोटे माल " पर अधिक है ?



Sunday 13 April 2014

राहुल का इंटरव्यू नहीं राष्ट्र के नाम संदेश !

हिंदी के दो बड़े न्यूज चैनलों ने कल कुछ बड़ा करने का दावा किया । वजह देश में हिंदी का नंबर एक चैनल होने का दावा करने वाले " आज तक " को  राहुल गांधी का इंटरव्यू मिल गया और बहुत लंबे समय तक नंबर एक रहे चैनल "इंडिया टीवी" को नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू मिला। राहुल ने इटरव्यू अपने घर के गार्डेन में दिया, जबकि मोदी चैनल के स्टूडियो पहुंचे थे। अब इंटरव्यू मिलने के बाद दोनों ही चैनल आपे से बाहर हो गए। इस इंटरव्यू को बेचने के लिए आज तक ने तो हद ही कर दी। चैनल पर कहा गया कि पिछले 10 साल का सबसे बड़ा इंटरव्यू.. वो भी हिंदी में। इंडिया टीवी ने इंटरव्यू के कुछ टुकडे 48 घंटे पहले दिखाना शुरू किया और बताता रहा कि पूरा इंटरव्यू शनिवार को रात में देखिए। वैसे हम कह सकते हैं कि इंडिया टीवी थोड़ा संयम में जरूर रहा। बहरहाल वीकेंड में आमतौर पर लोग न्यूज चैनल से दूर रहते हैं, लोग इस दिन इंटरटेनमेंट चैनल मसलन डांस इंडिया डांस, काँमेडी नाइट विद कपिल जैसे मनोरंजक प्रोग्राम ही देखना पसंद करते हैं, लेकिन इन दोनों चैनलों ने जिस तरह राहुल और नरेन्द्र मोदी की मार्केटिंग की, मैं भी मनोरंजक चैनलों के बजाए न्यूज चैनल पर ही बना रहा।

चलिए अब इनके इटरव्यू की बात कर ली जाए। जहां तक मुझे याद पिछले 10 सालों में आज तक चैनल पर इससे घटिया इंटरव्यू नहीं देखा होगा। आज तक में इंटरव्यू लेने के लिए इतने बड़े-बड़े चेहरे हैं, फिर उन्हें भोलू इंटर्न को भेजने की क्या जरूरत थी ? हो सकता है कि इंटर्न नाराज हो जाएं लिहाजा अब सिर्फ भोलू ही कहूंगा। देखिए बात शुरू हुई प्रधानमंत्री पद को लेकर। राहुल गांधी ने भोलू को समझाया कि हमारे यहां संविधान है, भोलू ने कहा, सही बात है.. संविधान तो है, राहुल ने पूछा.. संविधान में क्या लिखा है, जानते हैं..  आप लोग पढ़ते लिखते तो हैं नहीं, संविधान में लिखा है कि चुनाव के बाद सांसद प्रधानमंत्री का  चुनाव करेंगे । हम संविधान के हिसाब से चलते हैं.. बेचारा भोलू राहुल गांधी से डर गया और  ये भी नहीं पूछा कि 2004 में सांसदों ने तो सोनिया गांधी को चुनाव था, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बन गए। ऐसा तो संविधान में कहीं नहीं लिखा है। पूरे 24 मिनट तक राहुल गांधी सरकारी योजनाएं ही भोलू को समझाते रहे और बेचारा भोलू चुपचाप सरकारी योजनाएं समझता रहा।

अब अगर इंटरव्यू की शर्तों में ये बात शामिल थी कि बीच में कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा, जो राहुल बोलेंगे उसे पूरा दिखाया जाएगा, इंटरव्यू लेने पुण्य प्रसून वाजपेयी, राहुल कंवल जैसे नामचीन एंकर को नहीं भेजा जाएगा। तब तो मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन मैं एक बात जरूर कहूंगा कि ऐसे  में आज तक चैनल को ये बिल्कुल नहीं कहना चाहिए था कि पिछले 10 साल का सबसे बड़ा इंटरव्यू है। इसे राहुल का राष्ट्र के नाम संदेश कहते तो भी चल जाता। बहरहाल मैं दावे के साथ कह सकता है कि पिछले 10 साल में मैने आज तक चैनल पर इससे घटिया कोई भी इंटरव्यू नहीं देखा।
दूसरा इंटरव्यू इंडिया टीवी पर नरेन्द्र मोदी का था। रात 10 बजे शुरू हुआ ये इंटरव्यू लगभग दो घंटे यानि 12 बजे तक चलता रहा, मैने भी इस इंटरव्यू को पूरा देखा। वैसे मोदी का इंटरव्यू शुरू होते हैं कि सोशल साइट पर मोदी विरोधियों ने रजत शर्मा पर हमला बोल दिया। किसी ने इसे पेड कहा तो किसी ने फिक्स बताया। ऐसी प्रतिक्रिया आई तो मैं सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्या है जो इस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है। क्या जनता के मन  में कोई सवाल है जो रजत ने नहीं पूछा। मुझे लगता है कि जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल  गुजरात दंगा होगा, ये सवाल पूछा गया । अंबानी, अडानी, टाटा को दी गई जमीनों के बारे में भी सवाल पूछे गए। एक खास तपके की टोपी पहनने से इनकार कर दिया, ये सवाल भी पूछा गया, आडवाणी, जसवंत की नाराजगी पर भी सवाल पूछा गया, पिल्ला भी कार के नीचे आ जाए तो दुख होता है, ये सवाल भी पूछा गया, सुरक्षा, आर्थिक,  सामाजिक, विदेश नीतियों पर भी सवाल पूछे गए। हां हो सकता है कि कुछ लोग उनकी पत्नी के सवाल का इंतजार कर रहे हों कि आप अभी तक नामांकन पत्र में मैडम का नाम क्यों नहीं लिखते रहे ? इस बार क्यों शामिल किया ? रजत ने ये सवाल नहीं पूछा। लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं भी इस मत का हूं कि ये सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए, राजनीति को निजी जिंदगी से दूर  रखना चाहिए।

रजत से अगर कोई शिकायत हो सकती है तो ये हो सकती है कि आम तौर पर उनका जो तेवर रहता है, वो कहीं ना कहीं मीशिंग था । अब ये विवाद का विषय है कि मोदी के सामने उनके तेवर खुद ढीले पड़ गए या फिर उन्होंने जान बूझ कर तेवर के साथ समझौता किया ? कुछ लोगों की शिकायत थी कि स्टूडियो में लगातार मोदी-मोदी के नारे क्यों लग रहे थे। ये एक जायज सवाल है, लेकिन चुनाव का माहौल है, ऐसे में उत्साही समर्थक अगर ऐसा कर रहे थे, फिर तो मुझे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन इंटरव्यू का माहौल बनाए रखने के लिए अगर ये प्रायोजित किया गया था तो निश्चित ही एक गलत परंपरा है। बहरहाल चुनाव का माहौल है, आरोप प्रत्यारोप का सामना करना ही होगा, लेकिन मुझे इंडिया टीवी और आज तक के इंटरव्यू पर कमेंट करना हो तो मैं आजतक के इंटरव्यू को वाकई फिक्स इंटरव्यू ही कहूंगा।




    

Tuesday 25 March 2014

आज तक साँरी आज की पत्रकारिता पर कचरा !


लोकसभा चुनाव कल खत्म हो जाएगा, लेकिन इस चुनाव में मीडिया का जो दागदार चेहरा सामने आ रहा है, उस दाग को साफ करना मीडिया के लिए आसान नहीं होगा। अच्छा छोटे मोटे अखबार या फिर चैनल ओछी हरकत करें तो एक बार उसकी अनदेखी की जा सकती है, लेकिन जब देश का नंबर एक चैनल होने का दावा करने वाला कोई हिंदी चैनल ऐसी घटिया हरकत करता है तो पूरी मीडिया कटघरे में खड़ी हो जाती है। पिछले दिनों एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी और अरविंद केजरीवाल के बीच हुई बात चीत का एक टुकड़ा सामने आया था, इससे मीडिया पर तरह तरह के आरोप लगे,  हालाकि इंटरव्यू के बाद हर नेता ऐसी बातें करता है, ये सामान्य बात है, लेकिन पत्रकार का जो रियेक्शन है वो ऐसा नहीं होता जैसा वाजपेयी का रहा। पूरा इंटरव्यू देखा है, लगा नहीं कि ये इंटरव्यू वाजपेयी कर रहे हैं, इसे अगर पेड इंटरव्यू कहा जाए तो गलत नहीं होगा ! वाजपेयी ने चैनल की जो किरकिरी कराई अभी उसकी चर्चा बंद भी नहीं हुई थी कि इसी ग्रुप की अंजना ओम कश्यप ने एक बार फिर चैनल की विश्वसनीयता पर कालिख पोत दी। ऐसा लगा कि चैनल का रिपोर्टर नहीं आप का कार्यकर्ता सवाल पूछ रहा है, लिहाजा छात्रों ने कश्यप पर कचरा फैंक कर अपना गुस्सा उतारा।  

वैसे जिस समय ये हादसा बीएचयू में हुआ, मैं तो वहां मौजूद नहीं था, लेकिन जो तस्वीरें और सवाल सोशल साइट पर देख  रहा हूं, उससे इतना तो साफ है कि अंजना ने पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा का पालन नहीं किया। आइये अब हम आप को विस्तार से बताते हैं की  बीएचयू कैंपस में आखिर हुआ क्या था। बताया गया कि अंजना बीएचयू कैंपस गई हुई थी, यहां उन्होंने पत्रकारिता की आड़ में अप्रत्यक्ष रूप से " आप " का प्रचार शुरू कर दिया। अपने सवालों के माध्यम से छात्रों को मोदी के ख़िलाफ़ भड़काने का प्रयास कर रही थी। छात्रों से उलटे सीधे सवाल पूछ रही थी, चलिए उनके सवाल भी सुन लीजिए।
१. अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में इतने भरी मतों से विजयी हुए थे, आप को क्यों लगता है की वो वाराणसी से नहीं जीत पाएंगे....?
२. जिस पार्टी में सीनियर नेताओं की इज्ज़त नहीं है ऐसी पार्टी को क्यों वोट देना चाहिए ?
३ नरेंद्र मोदी डर गए हैं क्या, इसलिए दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं?
४. अगर आप नरेंद्र मोदी को वोट देंगे तो क्यों देंगे ?
५. मोदी दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं अगर जीतने के बाद बनारस को छोड़ दिया तब क्या आप लोग ठगे महसूस नहीं करोगे ?
६. मोदी को क्यों वोट देंगे ? मोदी का मतलब क्या है ?
७. क्या हिंदुस्तान का मतलब हिंदुत्वा है ?
८. छात्रों को हड़का कर कह रही थी क्या आप लोग जानते हैं लोकतंत्र का मतलब क्या होता है ? लोकतंत्र का मतलब होता है चुनौती देना ।

इस सवाल और उनके तेवर से आप आसानी से समझ सकते हैं कि ये किसी जर्नलिस्ट का ना सवाल हो सकता है और ना ही तेवर। इस तरह के सवाल से ये संदेश जाना स्वाभाविक है कि आप पत्रकारिता नहीं कर रही हैं,  बल्कि एक खास पार्टी के लिए माहौल बना रहे हैं। वैसे बनारस को कोई राजनीति नहीं सिखा सकता। यही वजह है कि यहां लोगों ने ईंट का जवाब पत्थर से देकर उन्हें निरुत्तर कर दिया। आप भी सुनिए छात्रों के जवाब ..
१. हम किसी ऐसे आदमी को वोट नहीं देंगे जो अपनी बातों से पलट जाता है ।
२. हम भगोड़े को वोट नहीं देंगे, दिल्ली में काम करने का मौका मिला तो भागे क्यों ?
३. मोदी विकास पुरुष हैं, वो अगर जीते तो बनारस का ही नहीं पूरे देश का विकास होगा ।
४. केजरीवाल को एक बार मौका मिला था दिल्ली में जहां वो पूरी तरह फेलियर रहे ।
५. लड़कियों ने कहा की हमें सुरक्षा सिर्फ मोदी दे सकते हैं...
६. केजरीवाल चुनाव में सिर्फ हारेंगे ही नहीं बल्कि चुनाव बाद उनकी पार्टी खत्म हो जाएगी ।
७. मोदी धर्म निरपेक्ष हैं
८. एक छात्र ने अंजना ओम कश्यप को यहाँ तक कह दिया की आप अपने पथ से भटक गयी हो

वैसे यहां पूरे कार्यक्रम के दौरान छात्र "हर हर मोदी घर घर मोदी का नारा लगा रहे थे। उनके नारा लगाने से शायद अंजना और खफा हो गईं और वो और आक्रामक होकर सवाल करने लगी, शायद ये बात छात्रों को ठीक नहीं लगी और वो अंजना को सबक  सिखाने की सोचने लग गए। ये सिलसिला अभी चल ही रहा था तभी पास की बिल्डिंग के ऊपर से छात्रों ने अंजना की हूटिंग शुरू कर दी, इतना ही नहीं बाद में अंजना के ऊपर कचरा भी फ़ेंकने लगे । हालत ये हुई कि अंजना को अपना कार्यक्रम बीच मेंए ही बंद करना करना पड़ा। हालाकि मैं अंजना पर फैंके गए कचरे का सख्त विरोधी हूं, बीएचयू के छात्रों को संयम बरतना चाहिए था । मेरा मानना है कि अंजना सवाल चाहे जैसे भी पूछती जवाब तो छात्रों को देना था, वो अपना जवाब देते। दरअसल  अंजना को लोग टीवी पर सुनते रहे हैं और सोशल मीडिया में तो उन पर पहले से ही पक्षपात का आरोप लगता रहा है। उनकी छवि एक  निष्पक्ष एंकर की न होकर आप समर्थक की है। शायद छात्रों का गुस्सा पत्रकार पर नहीं पीत पत्रकारिता पर था।

बहरहाल जो हुआ, ये नहीं होना चाहिए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये  है कि मीडिया अगर बेईमान हो जाए तो आम जनता करे क्या ? मुझे तो लगता है कि अब मीडिया पर लगाम लगाने की वाली कोई संस्था जरूर होनी चाहिए। आत्मनियंत्रण का मौका सरकार ने दिया, लेकिन मीडिया ने वो मौका गवां दिया। अब नकेल कसे जाने की जरूरत है, जिससे कोई भी मीडिया हाउस गंदगी ना मचा सके।