Wednesday 22 May 2013

मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !



लोकसभा का चुनाव कब होगा, ये अभी तय नहीं है, यूपीए में कौन से दल शामिल रहेंगे, ये भी तय नहीं है, एनडीए की मुख्य सहयोगी पार्टी जेडीयू का क्या रुख होगा, तय नहीं है। बात तीसरे मोर्चें की भी बहुत हो रही, इसमें कौन कौन शामिल होगा, जिम्मेदारी से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मीडिया ने सरकार के भविष्य का फैसला सुना दिया। एक जाने माने न्यूज चैनल ने अपने सर्वे में साफ किया है कि इस बार यूपीए का प्रदर्शन निराशाजनक रहेगा, खासतौर पर कांग्रेस का प्रदर्शन तो और भी बुरा होगा। वहीं एनडीए और बीजेपी के प्रदर्शन को बेहतर तो बताया गया है, लेकिन ये भी कहा गया है कि बहुमत एनडीए को भी नहीं मिलेगा। हालाकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अभी प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नेता का नाम आगे नहीं किया है, लेकिन मीडिया ने इस बात पर भी सर्वे कर लिया और कहाकि प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी 36 फीसदी से ज्यादा लोगों की पहली पसंद हैं, जबकि  राहुल गांधी को महज 16 फीसदी लोग भी पसंद करते हैं। आईबीएन 7 के सर्वे में 65 फीसदी से ज्यादा लोग कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधे जिम्मेदार मानते हैं, मसलन मिस्टर क्लीन अब साफ सुथरे बिल्कुल नहीं रह गए। अच्छा मीडिया ने और विपक्ष यानि बीजेपी ने एक काम तो बढिया किया, कि उन्होंने यूपीए-2 के चार साल के कामकाज पर रिपोर्ड कार्ड पहले ही जारी कर दिया, वरना सरकार ने जो रिपोर्ट कार्ड पेश किया है, उसमें भी ईमानदारी नहीं दिखाई दे रही है।

अपनी बात शुरू करें, इसके पहले चैनलों के सर्वे पर एक नजर डाल लेते हैं। एबीपी न्यूज- नील्सन के सर्वे की माने तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 116 सीटों पर सिमट जाएगी,  मतलब उसे 90 सीटों का नुकसान होगा। लेकिन इससे बीजेपी को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कांग्रेस के इस नुकसान का फायदा छोटी और क्षेत्रिय पार्टियों को ज्यादा होगा। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार एनडीए को 27 सीटे ज्यादा मिलेगी, जबकि तीसरे मोर्चे की छोटी-छोटी पार्टियों को 68 से भी ज्यादा सीटों का फायदा होने वाला है।  भाजपा अखिल भारतीय स्तर पर सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरने वाली है। सर्वे के मुताबिक भाजपा को 137 मिल सकती है, तो कांग्रेस 206 सीटों से घट कर 116 पर आ गिरेगी। मतलब साफ है कि उसे 90 सीटों का नुकसान होने जा रहा है। अगर बीजपी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करती है तो भाजपा की सीटे बढेगी। छोटी सी चर्चा यूपी की कर दें, अभी यूपी में कांग्रेस के पास 21 सीटें है, सर्वे बता रहा है कि अगले चुनाव में सिर्फ सात रह जाएंगी। सर्वे रिपोर्ट में एक दिलचस्प जानकारी है, पिछली लोकसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, इस बार चुनाव में कांग्रेस को यहां से एक भी सीट नहीं मिलने वाली है। मतलब दमदार नेता कपिल सिबब्ल की भी कुर्सी गई।

दूसरा सर्वे मैं अपने चैनल आईबीएन 7 का बता दूं। IBN7 और GFK-mode ने देश के 12 शहरों में 2466 लोगों से पूछे यूपीए-2 के चार साल के कार्यकाल पर कुछ अहम सवाल। इसके लिए पहले लोगों से सरकार और उसके मुखिया से जुड़े सवाल पूछे गए। नतीजा बताऊं, देश में ऐसी नाराजगी है सरकार को लेकर जो इसके पहले किसी भी सरकार के खिलाफ नहीं देखी गई। मसलन 68 फीसदी लोग चाहते हैं कि इस सरकार को सत्ता में बने रहने का अब कोई हक नहीं है। और तो और मिस्टर क्लीन बोले तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 65 फीसदी लोग कोयला घोटाले के लिए सीधे जिम्मेदार मानते हैं। बड़ा बुरा वक्त है प्रधानमंत्री जी। इतना गंभीर आरोप इसके पहले किसी प्रधानमंत्री पर नहीं लगा। बोफोर्स वगैरह तो फिर भी ठीक था, कोयले की कालिख ने तो सच में सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आईबीएन 7 के सवाल पर जवाब सुन लीजिए। 71 फीसदी ने कहा भ्रष्टाचार बढ़ा है, 20 फीसदी ने कहा जस का तस, 8 फीसदी मानते हैं कि भ्रष्टाचार घटा है, धन्य हैं प्रभु, कुछ लोग ये मानते तो हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। मंहगाई के बारे में पूछे गए सवाल पर 51 फीसदी ने कहा महंगाई तो बढ़ी है, 43 फीसदी का कहना है पहले जैसी ही है, 5 फीसदी लोगों की नजर में हर चीज का दाम बढ़ा है। पूछा गया कि क्या कोयला घोटाले के लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं ? भाई 65 फीसदी ने हां में सिर हिलाया, लेकिन 28 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के साथ भी हैं, उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं। एक सवाल और हुआ कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय कोयला और टूजी घोटालों को दबा रहा है? यहां भी प्रधानमंत्री के खिलाफ ही जवाब आया। 64 फीसदी ने कहा हां, 25 फीसदी ने कहा नहीं,11 फीसदी का कहना है पता नहीं। आखिरी सवाल हुआ प्रधानमंत्री को लेकर, पूछा गया कि अगला प्रधानमंत्री कौन हो ? जवाब चौंकाने वाला रहा, 56 फीसदी ने कहा नरेंद्र मोदी जबकि सिर्फ 29 फीसदी का कहना है राहुल गांधी। जाहिर है झटका सिर्फ यूपीए सरकार को ही नहीं कांग्रेस के युवराज और प्रधानमंत्री पद के दावेदार के लिए भी है।

बहरहाल सर्वे तो कई और न्यूज चैनल और समाचार पत्रों ने भी किया है। कमोवेश इसी तरह के सवाल हैं और जवाब भी मिलते जुलते ही हैं। लेकिन अहम सवाल ये है कि आखिर अभी जब चुनाव की तारीख तय नहीं, गठबंधन की सूरत साफ नहीं, उम्मीदवार कौन होगा, ये पता नहीं, तो इस सर्वे की विश्वसनीयता भला क्या हो सकती है ? मैं तो एक और सवाल पूछना चाहता हूं कि आखिर मीडिया में हो रही इस बेमौसम बरसात की वजह क्या है। वैसे सच तो ये है कि किसी एक चैनल ने कुछ शुरू किया तो यहां प्रतियोगिता शुरू हो जाती है,  कौन पहले सर्वे कर लेता है। सर्वे में क्या क्या बातें बता देता है। यही एक ऐसा मामला है कि यहां कोई पिछड़ना नहीं चाहता। बहरहाल अगर आप व्यक्तिगत रूप से मेरी राय जानना चाहें तो मैं इसे बेमतलब का काम समझता हूं। मैं तो ऐसे सर्वे को "राजनीति का आईपीएल" ही समझता हूं। मतलब बाहर से ये आपका खूब मनोरंजन करेगा, लेकिन इसके अंदर क्या है, इस बारे में विश्वास के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सच कहूं तो इस बात का जवाब किसी भी मीडिया संस्थान के पास नहीं होगा कि जब राजनीतिक दलों ने अभी कुछ भी तय ही नही किया है तो ऐसे सर्वे पर भरोसा कैसे किया जा सकता है?  ना अभी राहुल गांधी को कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किया है और ना ही नरेन्द्र मोदी को बीजेपी ने। ऐसे मे इन दोनों को केंद्र में रखकर किया गया सर्वे कितना भरोसे मंद होगा, ये तो मीडिया से जुड़े जिम्मेदार लोग ही बता सकते हैं। खैर मीडिया संस्थानों को अगर ऐसे सर्वे से खुशी मिलती है तो हमें आपको भला क्यों तकलीफ होनी चाहिए। आप भी देखते रहिए राजनीति का आईपीएल।

वैसे बड़ी बात ये है कि सरकार पर विपक्ष का हमला तो होता रहता है, लेकिन आज सरकार के खिलाफ मीडिया जिस तरह हमलावर है। कम से कम ये तो सरकार के लिए खतरे की घंटी ही कही जाएगी। ऐसे में सवाल ये है कि माहौल के मुताबिक सरकार कुछ सबक ले भी रही है या नहीं ! मैं तो यही कहूंगा कि मीडिया भले गैरजिम्मेदारी के साथ पेश आ रही हो, लेकिन सरकार को उन मसलों पर गहराई से विचार करना ही होगा, जो मामले मीडिया की सुर्खियों में हैं। इतना तो तय है कि ये सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है, मंत्रियों की करतूतों से सरकार का चेहरा दागदार है। बहुत जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि आज पीएम के पद की गरिमा तार-तार हो चुकी है। इस पद की हैसियत एक घरेलू नौकर से ज्यादा की नहीं रह गई है। लगता ही नहीं मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं, पहली नजर में तो यही दिखाई देता है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री का काम दिया गया है, जिसे वो एक नौकरशाह की तरह करने की कोशिश भर कर रहे हैं। ना वो नेता हैं और न ही उनमें नेतृत्व  का कोई गुण दिखाई दे रहा है।

वैसे सरकार के कामकाज पर उंगली उठाने का हक कम से कम आज मीडिया को तो नहीं रह गया है। देखा जा रहा है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनलों पर कुछ चुनिंदा लोगो के विचारों को थोपने की साजिश की जा रही है। एक तो ये " वरिष्ठ पत्रकार " का तमगा चैनल वाले ऐसे बांटते हैं कि पूछिए मत। सच कहूं तो ये पत्रकार कम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि ज्यादा लगते हैं। कोई कांग्रेस से जुड़ा है, तो कोई बीजेपी में आस्था रखता है। कुछ का तो छोटे मोटे राजनीतिक दलों से ही दाना-पानी चल रहा है। आज मीडिया में काफी अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल की जा रही है, सच कहूं तो पुराने लोग अब इस तकनीक के साथ चल नहीं पा रहे हैं, लिहाजा वो मजबूर हो जाते हैं नौकरी छोड़ने के लिए। अखबार या चैनल से नौकरी जाते ही वो बन जाते हैं वरिष्ठ पत्रकार। अच्छा इतने ज्यादा चैनल हो गए हैं कि उन्हें शाम की पंचायत के लिए राजनीतिक गेस्ट मिलते ही नहीं। ऐसे में मजबूरी हो जाती है कि कुछ पत्रकारों से ही काम चला लिया जाए। सच्चाई ये है कि चैनलों को अगर अच्छे गेस्ट मिल जाएं तो बेचारे "वरिष्ठ पत्रकार" को कोई पूछने वाला नहीं है।

अच्छा सम्मान किसे अच्छा नहीं लगता। चैनल के चौपाल में अगर एंकर उन्हें आठ-दस बार वरिष्ठ पत्रकार कह कर संबोधित करता है तो ये छोटी बात तो है नहीं। आपको नहीं पता  होगा, लेकिन जान लीजिए जैसे नेता लोग टिकट पाने के लिेए अखबारों की कटिंग लगाकर आवेदन करते हैं, वैसे ही पत्रकार जी लोग भी "पद्मश्री"  हासिल करने के लिेए इन पंचायतों की सीडी बनाकर नेताओं को सुनाते हैं, कहते हैं कि देखिए चुनाव के पहले से हम आपके बारे में कितनी बढ़िया-बढिया बातें करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार लोग अपने संस्थान में नौकरी पक्की करने के लिए ये "पद्मश्री" अखबार के मालिक को भी दिलाते रहते हैं। खैर मैं विषय से भटक रहा हूं, पर मेरा मानना है कि पत्रकारिता की पवित्रता को बनाए रखने के लिए पद्मम् सम्मान से पत्रकारिता की श्रेणी को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जाना चाहिए। इससे कम से कम कुछ हद तक सत्ता की दलाली पर रोक लग सकेगी। मैं पदम सम्मान हासिल किए हुए वरिष्ठ पत्रकारों को जब चैनलों की पंचायत में सुनता हूं तो मुझे उनकी सोच पर हैरानी होती है, फिर लगता है कि दोष इनका नहीं है, ये तो सिर्फ कर्ज उतार रहे हैं। लेकिन जिन्हें ये सम्मान अभी नहीं मिला है, वो तो इसे हासिल करने के लिए सारी मर्यादाएं तार-तार कर देते हैं। बहरहाल यूपीए की सरकार का क्या होगा ? ये तो भविष्य तय करेगा, लेकिन इतना तो सच है कि मीडिया ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।


Thursday 9 May 2013

ये है मैडम सोनिया की मीडिया !


ज एक राज की बात बताता हूं, मैं सोनिया गांधी को नेता नहीं मानता था, मुझे लगता था कि उन्हें बतौर मृतक आश्रित कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी मिली है और अपना काम ईमानदारी से भले ना करें लेकिन मेहनत से तो करती हैं। लेकिन दो दिन से उनका मीडिया मैनेजमेंट देखकर हैरान हूं। इतना ही नहीं मेरी ये धारणा भी बदल गई है कि वो राजनीति नहीं जानती हैं, उनमें नेता की काबीलियत नहीं हैं। भाई वो ना सिर्फ राजनीति को समझती हैं, बल्कि अपनी ही सरकार और पार्टी से राजनीति करती भी हैं। अब देखिए ना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इमेज एक ईमानदार प्रधानमंत्री की थी, आज पूरा देश उन्हें "चोर" कह रहा है, उनकी ईमानदारी सवालों के घेरे में है। रेलमंत्री पवन कुमार बंसल की चोरी पकड़े जाने से पूरी पार्टी कटघरे में है। कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने सीबीआई के काम में दखल देकर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी मोल ले ली है। अगर मैं ये कहूं कि ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी बल्कि पूरी सरकार इस समय मुंह काला कराए घूम रही है तो गलत नहीं होगा ? इसके उलट सोनिया गांधी खुद ईमानदार और साफ-सुथरी बनी हुई हैं, वजह जानते हैं। कांग्रेस के कुछ बड़े नेता मीडिया को इस्तेमाल कर रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण से सोनिया गांधी बहुत दुखी हैं, पार्टी की क्षवि खराब होने से वो प्रधानमंत्री से भी नाराज हैं और वो चाहती हैं को दोनों मंत्रियों का इस्तीफा लिया जाए, लेकिन प्रधानमंत्री चोर मंत्रियों को बचा रहे हैं। सोनिया जी क्यों भूल गईं कि पार्टी की क्षवि तो उनके दामाद राबर्ट वाड्रा की वजह से भी खराब हो रही थी, उस वक्त आपने नाराजगी नहीं जताई। हाहाहहा..यानि मीठा मीठा गप्प, कडुवा-कडुवा थू।

अब देखिए दो तीन दिन से मीडिया में एक चर्चा शुरू हुई है, वो है " नैतिकता " की। अच्छी बहस है, समय-समय पर होनी चाहिए, ये बहस सुनने में भी अच्छी भी लगती है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आज मीडिया को नैतिकता की अपेक्षा किससे है ? केंद्र सरकार के बेचारे दो गरीब मंत्रियों पवन बंसल और अश्वनी कुमार से, जिनकी चोरी पकड़ी जा चुकी है। इन दोनों का तो जीना मुहाल हो गया है, देश तो उन्हें चोर कह ही रहा है, परिवार में भी वो चैन से नहीं रह पा रहे हैं। पता चला हैं पूरे दिन उनके रिश्तेदारों के फोन आ रहे है, सब शोक जता रहे हैं। बेटियां ससुराल से घर आ गई हैं, उन्हें लगता है कि पापा जब मुश्किल में हों तो उस वक्त बेटी का घर में रहना जरूरी है, इससे पापा को ताकत मिलती है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि मीडिया को "नैतिकता" की अपेक्षा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से क्यों नहीं है ?सब को पता है कि कानून मंत्री अश्वनी कुमार की गल्ती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने कोल ब्लाक आवंटन के मामले में सीबीआई की जांच रिपोर्ट को देखा और उसमें कुछ फेरबदल कराया। इस मामले का खुलासा हो जाने से बेचारे कानून मंत्री का सुप्रीम कोर्ट ने धुआं निकाल दिया है।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कानून मंत्री सीबीआई की जांच रिपोर्ट या तकनीकी भाषा में कहें  स्टेट्स रिपोर्ट आखिर क्यों चेक कर रहे थे ? अपने कानून मंत्री कभी कोयला मंत्री तो रहे नहीं है, फिर कोल ब्लाक आवंटन के मामले में उनका डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कोई हाथ भी नहीं रहा है। सब जानते हैं कि उनकी कोशिश तो सिर्फ यही थी कि बेचारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह पर कोयले की कालिख ना पुते। क्योंकि कोल ब्लाक आवंटन के मामले में घोटाले का खुलासा विपक्ष ने नहीं बल्कि संवैधानिक संस्था सीएजी ने किया है। कहा गया कि कोल ब्लाक आवंटन में गडबड़ी के चलते देश को एक लाख 86 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। जिस समय ये कोल ब्लाक आवंटित किए गए, उस समय कोयला मंत्रालय अपने ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था। अगर सीबीआई की जांच में ये पाया जाता है कि कोल ब्लाक आवंटन में गडबड़ी हुई तो इसके लिए कानून मंत्री को तो कोई सजा होनी नहीं थी, अगर किसी को सजा मिलती भी तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिल सकती है। इससे इतना तो साफ है कि कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने जो कुछ भी किया वो सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह का चेहरा काला होने से बचाने के लिए किया। ऐसे में हमें नैतिकता की अपेक्षा अश्वनी कुमार से ही क्यों होनी चाहिए, प्रधानमंत्री से क्यों नहीं होनी चाहिए ?

खैर ! सोनिया गांधी की बात पूरी कर लूं, फिर इस मुद्दे को आगे बढाता हूं। सोनिया जी आप से सीधी बात करना चाहता हूं। मेरा मानना है कि आप खुद को बुद्धिमान समझे, इसमें मुझे या देश के किसी भी नागरिक को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन आप हमें और देश को मूर्ख समझेंगी तो भला ये हम कैसे बर्दाश्त सकते हैं ? आपके कुछ खास चंपू नेताओं के जरिए बार-बार मीडिया में एक संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि आप इस पूरे प्रकरण से दुखी है, आप चाहती हैं कि दागी मंत्री यानि अश्वनी कुमार और पवन कुमार बंसल इस्तीफा दे दें। दो दिन से ये बात लगातार टीवी चैनलों के जरिए सुन रहा हूं। लेकिन आपके चाहने के बाद भी ये मंत्री इस्तीफा देने को तेयार नहीं है। इतना ही नहीं, ये संदेश भी देने की कोशिश की जा रही है कि मंत्रियों के इस्तीफे को लेकर आप में और प्रधानमंत्री में खट-पट हो गई है। मसलन आप तो जहां चोर मंत्रियों को हटाना चाहती हैं वहीं प्रधानमंत्री इन्हें बचाना चाहते हैं, इसीलिए अभी तक उन्होंने इस्तीफा नहीं लिया। सोनिया जी माफ कीजिएगा, पर एक बात बताएं, आप इस वक्त इटली में नहीं है, अभी आप इंडिया में है। सब को पता है कि अगर आप ने सिर्फ आंख भर दिखा दिया ना, तो छोटे-मोटे मंत्रियों की तो बात ही अलग है, देश के प्रधानमंत्री का पैजामा भी गीला हो जाएगा। और आप हैं कि देश को ये संदेश देना चाहती हैं कि आपकी कोई सुन नहीं रहा है। कमाल है आप चाहती हैं कि दागी मंत्री इस्तीफा दें, लेकिन प्रधानमंत्री उन्हें बचा रहे हैं। आपके ऐसे ही घटिया सलाहकारों की वजह से सरकार और पार्टी की छीछालेदर देश और दुनिया मे हो रही है।

चूंकि आज देश में नैतिकता पर सबसे ज्यादा बहस हो रही है, इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र करना जरूरी है। प्रधानमंत्री जी एक बात बताइये, आपका मंत्रिमंडल चोरों की जमात है और आप उसके सरदार। क्या कभी भी आपको लगा कि इन चोरों की जमात से छुटकारा पाना चाहिए ? मैंने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं से पूछा कि आखिर सोनिया गांधी को मनमोहन सिंह में क्या दिखाई दिया जो उन्होंने इन्हें प्रधानमंत्री बना दिया। इसका जवाब किसी नेता के पास नहीं है, सब चुप हो जाते हैं। अब एक बात जो मेरी समझ में आ रही है, वो ये कि शरीर में सबसे महत्वपूर्ण हड्डी यानि रीढ की हड़्डी देश के प्रधानमंत्री में नहीं है, मुझे तो नहीं लगता कि इसके अलावा उनमें कुछ और खास क्या है। लेकिन सवाल ये कि अगर रीढ की हड्डी ना होना ही प्रधानमंत्री पद की योग्यता है तो मैं कांग्रेस के कई दिग्गजों को जानता हूं जिनके पास ये हड्डी नहीं है। खैर छोडिए ! अगर मैडम सोनिया का आशीर्वाद मिले तो पार्टी का कोई भी नेता ये हड्डी निकलवाने के लिए तैयार हो जाएगा। ऐसे में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को ही क्यों चुना ?  ये बात आज भी पार्टी में पहेली बनी हुई है। बहरहाल अब इनके बारे में जानने की ज्यादा जरूरत नहीं है, क्योंकि देश देख रहा है कि ये मन मोहन हैं, इसीलिए प्रधानमंत्री हैं।

कहते हैं ना जब दिन बुरा हो तो आदमी हाथी पर बैठा हो, फिर भी उसे कुत्ता काट लेता है। सरकार ऐसे ही मुश्किल में है अब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद ऐसा तोता बता दिया जो अपने मालिक की भाषा बोलता है। माननीय कोर्ट को बता दूं कि राजनीति में तोते और तोतेबाज ही कामयाब हैं। कांग्रेस ने सिर्फ सीबीआई को ही तोता नहीं बनाया, बल्कि जो भी उनके आस-पास है, सब तोता बनकर ही उनके नजदीक रह सकते हैं। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बाद भी प्रधानमंत्री मजे में हैं, अश्वनी कुमार और पवन कुमार बंसल से इस्तीफा लेने की उनकी हैसियत नहीं है। किस मुंह से कहेंगे कि आप इस्तीफा दो, इन मंत्रियों से ज्यादा गंभीर आरोप तो उन पर खुद हैं। लेकिन टूजी के मामले में ए राजा को छोडिए, करुणानिधी की बेटी तक को जेल भेज दिया, लेकिन बेचारे करुणानिधि तोता बने रहे। सपा मुखिया सड़क पर खुलेआम सरकार को गाली देते हैं, पर संसद मे तोता बन जाते हैं। यही हाल बहन मायावती का है। बताते हैं कि सरकार ने सीबीआई को ना सिर्फ तोता बनाया है, बल्कि राजनेताओं को कैसे तोता बनाए रखना है ये गुर भी सिखा दिया है। इसीलिए मुलायम और माया सीबीआई के तोते बने रहते हैं। बेशर्मी की हद तो ये है कि कांग्रेसी इन्हीं तोतों की वजह से विपक्ष को चुनौती दे रहे हैं। कह रहे हैं कि अगर विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्यों नहीं लाते ? हाहाहाहा, अब इसका जवाब भला कौन दे सकता है। इशारों में तो मुलायम सिंह यादव कह चुके हैं कि अगर सरकार के खिलाफ बात करो तो ये सीबीआई को हमारे पीछे लगा देते हैं। अब इससे ज्यादा भला कोई क्या कह सकता है।

मुझे लगता है कि कर्नाटक के चुनावी नतीजों का कांग्रेस को बेसब्री से इंतजार था। उसे पता था कि कमजोर, बेईमान, भ्रष्ट और ना जाने क्या क्या बताकर जो मीडिया केंद्र की सरकार को आज कटघरे में खड़ा कर रही है, चुनाव नतीजों के बाद यही मीडिया सरकार के गुण गाती नजर आएगी। मतगणना वाले दिन वैसा ही कुछ दिखाई भी दिया। न्यूज चैनलों का मुद्दा बदल चुका था, सभी चैनल चाहे हिंदी हों या अंग्रेजी सब ने अपना रुख कर्नाटक की ओर कर लिया। हालाकि इस बार चुनाव में क्या होने वाला है ये सबको चुनाव के पहले पता था। लेकिन चैनलों पर जोर-शोर से दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी। लेकिन ये कोई नहीं बता रहा था कि कांग्रेस किसे हराकर वहां सरकार बनाने जा रही है, क्योंकि बीजेपी ने तो पहले ही हथियार डाल दिए थे। वो पूरे मन से चुनाव लड़ ही नहीं रही थी। बीजेपी पहले से ये मानती रही है कि कर्नाटक में बी एस यदुरप्पा की वजह से चुनाव में जीत हुई थी, अब वो नहीं हैं तो पार्टी की वहां कोई संभावना नहीं है। बहरहाल कांग्रेस का गुणगान कर रहे चैनलों ने देश की 135 करोड़ आबादी को पूरी तरह छोड़ दिया, सिर्फ कर्नाटक की 6.12 करोड़ आबादी वाले राज्य की खबर पर जमकर बैठ गए। अच्छा यहां कि 80 फीसदी आबादी ना हिंदी जानती है और ना अंग्रेजी, वो कन्नड समझते हैं। लेकिन इससे मीडिया को भला क्या लेना देना। सच तो ये है कि जैसे मीडिया को पता था कि वहां कांग्रेस अच्छा करने जा रही है, वैसे जो लोग राजनीति की एबीसीडी भी जानते हैं, वो भी जानते थे कि यदुरप्पा के बगैर बीजेपी वहां शून्य है। सही मायने में तो कर्नाटक में हार यदुरप्पा की हुई है। उन्हें ही लग रहा था कि चोरी चकारी के आरोप लगने के बाद भी वो कर्नाटक में मजबूत है, लेकिन वहां की जनता ने उन्हें बता दिया कि अब वो उनके नेता नहीं रहे। लेकिन मीडिया को क्या कहा जाए ?  उस दिन उसके लिए रेलमंत्री पवन बंसल के भ्रष्टाचार का मामला कोई मुद्दा नहीं रहा, सीबीआई की जांच रिपोर्ट में हेराफेरी कराने वाले कानून मंत्री का मसला भी कोई मुद्दा नहीं रहा। पांच साल की बच्ची से बलात्कार के बाद सड़कों पर उतरी महिलाओं के साथ मारपीट का मसला भी कोई मुद्दा नहीं रह गया। तीनों गंभीर मामले में किसी को सजा नहीं मिल पाई है, लेकिन ये मुद्दे गायब हो गए।

बहरहाल प्रधानमंत्री जी अब बहुत ज्यादा हो गया। आपका, आपकी सरकार का और आपकी पार्टी का असली चेहरा जनता के बीच आ चुका है। आप देख रहे हैं ना कि कर्नाटक की जीत भी आपको इस मुश्किल से उबार नहीं पाई है। हालाकि देश का एजेंडा बदलने की कोशिश मीडिया ने की, लेकिन देखा कि जब तक दागी मंत्री सरकार में बने रहेंगे, देश की जनता कुछ और सुनने को तैयार नहीं है, लिहाजा सभी को उसी खबर पर वापस आना पड़ गया। वरना तो आप देखते कर्नाटक के एक से एक रंग आपको चैनलों पर दिखाई देते। अब आपको भी पता है कि कल तक तो सिर्फ बीजेपी कह रही थी कि आपकी सरकार आजाद भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार है, अब देश का बच्चा बच्चा कह रहा है कि ये सरकार भ्रष्ट है और आप वाकई कमजोर ही नहीं बीमार और अपंग प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं। अगर आप में थोड़ा भी स्वाभिमान बचा है तो प्लीज कुर्सी का मोह त्याग दीजिए और खुद अपनी सरकार का इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दीजिए। हो सकता है कि आपकी इस कार्रवाई से आपका पाप कुछ कम हो जाए।