Sunday 18 November 2012

टीवी न्यूज : निकालते रहो टमाटर से हनुमान !


टीवी न्यूज चैनलों से धीरे धीरे खबरें गायब होती जा रही हैं। कहने को न्यूज चैनल 24 घंटे के हैं और हमेशा खबर दिखाए जाने का दावा भी करते हैं, लेकिन इन दावों में कोई सच्चाई नजर नहीं आती है। सुबह ज्यादातर चैनल पर ज्योतिष और पंडित बैठे रहते हैं, वो लोगों बताते हैं कि आज किस रंग के कपड़े पहने कि सब कुछ अच्छा बीते। ज्योतिषियों के जाने के कुछ देर बाद ही सास,बहू, साजिश टाइप शो शुरू हो जाते हैं। शाम होते होते एक बार फिर चैनलों पर अखाड़ा सजने लगता है, जिसमें किसी भी बात पर बहस होती है, जिसका कोई नतीजा नहीं निकलता। देर रात में ज्यादातर चैनल खोई हुई जवानी हासिल करने के लिए ताकत की दवा बेचते नजर आते हैं। कुछ चैनल तो सुबह से शाम तक प्रोमों चलाते हैं कि शाम को देखिए बड़ा खुलासा और शाम होती है तो वो टमाटर से हनुमान निकालने लगते हैं। अच्छा न्यूज चैनलों का काम मनोरंजक चैनलों ने लिया है। वो सामाजिक सरोकारों और अपराध की बड़ी घटनाओं से जुड़े मुद्दों पर बकायदा स्पेशल प्रोग्राम दिखा रहे हैं, जबकि धार्मिक चैनलों पर धर्म के अलावा सबकुछ है।

हम देखें तो पत्रकारिता में काफी बदलाव आया है। पहले रिपोर्टर को कोई खबर मिलती थी तो रिपोर्टर मौके पर जाकर पूरी जानकारी करता था, आफिस आकर कहानी लिखता था, फिर एक सब एडीटर कापी चेक कर उस पर हैडिंग लिखता था और ये खबर अखबार में प्रकाशित हो जाती थी। आज हालात बदल गए हैं,  अब सब एडीटर पहले हैडिंग तैयार करता है, वो रिपोर्टर को थमाई जाती है और कहा जाता है कि इसी आधार पर खबर लिखी जानी चाहिए। न्यूज चैनलों का हाल तो और बुरा है। यहां तो रात में तैयार हो जाता है अगले दिन का डे प्लान और सुबह सुबह तैयार होता है कि रात में क्या चलाया जाएगा। मतलब ये कि चैनल ही तैयार करते है कि कल क्या खबर होगी। देश के लोगों को क्या खबर दिखाई जानी है। अच्छा अगर चैनल में किसी  रिपोर्टर को बड़ी खबर हाथ लग जाए तो उसकी और मुसीबत है। पहले तो वो ये जवाब दे कि आपके पास इस खबर का प्रमाण क्या है ? रिपोर्टर बताता है कि खबर से संबंधित सारे डाक्यूमेंट हैं हमारे पास। फिर  सवाल डाक्यूमेंट सही हैं ना ? हां क्यों नहीं, सारे पेपर सही हैं। अच्छा ये स्टोरी ली गई तो दिखाएंगे क्या? बस इसी सवाल पर स्टोरी खत्म हो जाती है।

अकसर किसी समारोह या फिर सफर के दौरान कोई परिचित मिलता है, तो उनका एक सवाल होता है, वो कहते हैं, आप पत्रकारिता में दखल रखते हैं, आप बताएगें कि न्यूज चैनलों का इस कदर पतन क्यों हो गया है? जब भी समाचार देखने को मन होता है, किसी भी चैनल पर खबर नहीं चल रही होती। जो चैनल सबसे सर्वोच्च होने का दावा करते है, उसमें तो विज्ञापन ही विज्ञापन होते हैं। खबरों को वह फिलर की तरह इस्तेमाल करते है। जो चैनल खुद को बौद्धिक होने का दावा करते है, वह शाम को एक के बाद दूसरी अनर्गल परिचर्चाओं में उलझे रहते हैं। चैनल मामूली खबर को भी ऐसे दिखाते हैं, जैसे कि कोई तूफान आ गया हो। मजबूर होकर हमें अपने रीजनल चैनल पर आना पड़ता है, लेकिन वहां हिंदी इतनी खराब होती है, सच कहूं तो उबकाई आने लगती है। वैसे रही बात विज्ञापन की तो मैं चैनल के साथ रहूंगा, क्योंकि आज जिस तरह के चैनलों के खर्चे हैं, बिना विज्ञापन के चैनल को चलाना बहुत मुश्किल है। लेकिन खबरों को लेकर उनकी शिकायत मुझे भी जायज लगती है।

एक बात मुझे वाकई परेशान करती है। मैं देखता हूं कि आज किसी भी न्यूज चैनल पर ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं है, जिसका लोगों को इंतजार हो। मतलब लोग अपने सारे काम छोड़कर इंतजार करें कि फलां चैनल पर ये कार्यक्रम आने वाला है, उसे देखकर ही दूसरा काम निपटाया जाएगा। देश में सर्वोत्तम चैनल का पुरस्कार लगातार 12 साल से आजतक  को मिल रहा है। मैं आजतक से ही ये जानना चाहूं कि क्या वो कोई भी ऐसा कार्यक्रम या बुलेटिन बता सकते हैं, जिसका देश में लोग इंतजार हो ? मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसका कोई जवाब इनके पास नहीं होगा। मुझे आज भी याद है कि छोटे पर्दे पर एक जमाने में तमाम  ऐसे शो रहे हैं,  जिसका लोगों को पूरे हफ्ते इंतजार रहता था। इसमें रामायण, हमलोग, कहानी घर घर की, सास भी कभी बहू थी जैसे शो को ना सिर्फ लोग पसंद करते थे, बल्कि इस शो का लोगों को इंतजार भी रहता  था। न्यूज चैनल पर आखिर ऐसा क्यों नहीं है ?

हां मैं बहुत ईमानदारी से एक बात जरूर कहना चाहूंगा । अगर इलेक्ट्रानिक मीडिया में कभी रचनात्मक पत्रकारिता की बात होगी तो मैं अपने चैनल यानि IBN7 को पहले स्थान पर रखूंगा। यहां हर तपके की समस्याओं को लेकर कुछ ना कुछ खास कार्यक्रम आज भी हैं। मसलन जिंदगी लाइवएक  ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें सामाजिक बुराइयों को लेकर एक से बढ़कर एक शो बनाए गए और लोगों  ने इसे खूब सराहा भी  है। आप  ibnkhabar.com पर इस शो को आज भी देख सकते हैं। अगर मैं आमिर खान के लोकप्रिय  शो सत्यमेव जयतेको  जिंदगी लाइवशो का नकल कहूं तो गलत नहीं होगा। यही वजह है कि ये शो आज भी चैनल की जान है। आईटीए अवार्ड में भी इस शो को पुरस्कृत किया गया है।

आज कौन सा न्यूज चैनल है जो स्पेशल (विकलांग) लोगों की फिक्र करता है। लेकिन ये हिम्मत भी करता है IBN7। दरअसल इसके पीछे चैनल के एडीटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई और मैनेजिग एडीटर आशुतोष  की सकारात्मक सोच है। मैने तो दूसरे चैनल में कभी काम नहीं किया तो मुझे नहीं पता कि वहां एडीटर्स की क्या सोच है, लेकिन मैने न्यूज रूम में कई बार राजदीप को सुना है। उनका कहना है कि बेहतर पत्रकार होने के लिए सबसे जरूरी है बेहतर इंसान होना, जो बेहतर इंसान नहीं बन सकता वो बेहतर पत्रकार तो कभी नहीं हो सकता। चार साल पहले चैनल पर सुपर आयडल अवार्ड शुरू किया गया है, जिसमें ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है जो विकलांग होते हुए भी देश के लिए बड़ा काम करते हैं। इसी तरह एक खास कार्यक्रम है सिटिजन जर्नलिस्ट। आमतौर  पर देखा जाता है कि बहुत से लोग हैं तो तरह तरह की मुश्किलों को लेकर संघर्ष करते हैं, लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं होती है। ऐसे लोगों के संघर्ष को ताकत देने वाला प्रोग्राम है सिटिजन जर्नलिस्ट।

खैर ये तो एक चैनल की बात हुई, सवाल ये है कि आखिर न्यूज चैनल का फोकस क्या है ? चैनल करना क्या चाहते हैं और जो करना चाहते हैं उसका रास्ता क्या है ? अब आज की ही बात ले लें। सुबह नींद खुली तो चैनल पर बाल ठाकरे की शवयात्रा से दिन की शुरुआत हुई, रात तक यही खबर चलती रही, बस फर्क इतना रहा कि सुबह ये शव ट्रक पर था, रात को चिता पर। अब क्या इतने बड़े देश में आज पूरे दिन एक ही खबर थी ठाकरे की शवयात्रा। सच ये है कि दूसरी खबर चैनल पर चलाने की हिम्मत चाहिए, और वो  हिम्मत आज कोई भी एडीटर आसानी से नहीं कर सकता। दरअसल सबको पता है कि चैनल की टीआरपी के हिसाब से मुंबई एक महत्वपूर्ण महानगर है। इसीलिए चैनल इस शवयात्रा से भी टीआरपी खींचने में लगे रहे। वैसे भी आप सब जानते हैं कि रविवार के दिन लगभग सभी चैनल पर खास प्रोग्राम का दिन होता है, लेकिन जब शवयात्रा से ही टीआरपी का जुगाड़ हो गया हो, तो प्रोग्राम रोक लिए गए, चलिए अगले संडे को आराम रहेगा।

अच्छा ये गिरावट महज न्यूज चैनल तक नहीं है, बल्कि मनोरंजक चैनलों पर भी ऐसा ही कुछ है। घिसे पिटे कार्यक्रम देखकर लोग बोर हो रहे हैं। कुछ कार्यक्रम हैं जो कई साल से चल रहे हैं, उसमें कोई नयापन नहीं है। अच्छा आज कल छोटे पर्दे पर एक और चीज हो रही है, विभिन्न शो में नई फिल्मों के प्रमोशन के लिए हीरो हीरोइन पहुंचते हैं। ये सभी जगह एक ही बात करते हैं, वैसे भी इनके पास अपनी फिल्म के बारे में हर जगह नया कहने के लिए भला क्या हो सकता है ? बस बोर करते हैं दर्शकों को। हां पहले तो ये न्यूज चैनलों पर फिल्म का प्रमोशन करते हैं, उसके बाद ये टीवी शो में जाते हैं। बस कहना इतना है कि मनोरंजक चैनल पर मनोरंजन को छोड़कर सबकुछ है। इसीलिए कहता हूं कि छोटे पर्दे को भी पहले अपना रास्ता तलाशना होगा, फिर उस रास्ते पर चलने के लिए ठोस कार्यक्रम बनाना होगा। चलिए अब इंतजार करते, हम भी और आप भी कीजिए।




  



Saturday 10 November 2012

न्यूज चैनल में भी हैं राजा और कांडा !


टीवी न्यूज चैनलों को अब आत्ममंथन करने की जरूरत है। जी न्यूज के मैनेजिंग एडीटर सुधीर चौधरी का जिंदल ग्रुप के साथ खबरों को लेकर सौदेबाजी का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि हिंदी के जाने माने न्यूज चैनल "आज तक" के मैनेजिंग एडीटर सुप्रिय प्रसाद का अपने  ही चैनल की एक महिला कर्मी से अभद्र व्यवहार का मामला सुर्खियों में है। जो हालात हैं उसे अगर टीवी यानि न्यूज चैनल की भाषा में कहूं तो हम कह सकते हैं कि अब न्यूज चैनल भी ए राजा और गोपाल कांडा से अछूते नहीं रहे। फर्क बस इतना है कि राजा और कांडा की करतूतें सामने आ चुकी हैं, जबकि टीवी के राजा और कांडा तक अभी पुलिस नहीं पहुंच पाई है। मैं बहुत जिम्मेदारी से ब्राडकास्टिंग एडीटर एसोसिएशन का ध्यान इस ओर ले जाना चाहता हूं कि अगर समय रहते ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी बची खुची विश्वसनीयता और सम्मान से भी हाथ धो बैठेगा।

खबरों को लेकर सुर्खियों में रहने वाली मीडिया आज खुद खबरों में है। मीडिया से जुड़ा हूं तो जाहिर है बहुत सी चीजें देखता भी हूं, आज एक बार फिर उन्हीं बातों पर चर्चा करूंगा। मैं हमेशा इस मत का रहा हूं कि अगर आप अपने गिरेबां में झांकने की हिम्मत नहीं रखते तो आपको दूसरों पर उंगली उठाने का हक नहीं है। इसी ब्लाग पर मैने दो लेख जी न्यूज के मैनेजिंग एडीटर सुधीर चौधरी को लेकर लिखा है। आप सब को पता है कि जो साक्ष्य अब तक सामने आए हैं, उससे साफ है कि जी न्यूज के एडीटर जिंदल ग्रुप के अफसरों के साथ खबरों की सौदेबाजी कर रहे थे। मसलन अगर जिंदल ग्रुप उन्हें सौ करोड रुपये का विज्ञापन  देने को तेयार हो जाता तो वो फिर जिंदल ग्रुप के खिलाफ खबरें ना चलाते। स्टिंग आपरेशन में इसी तरह की बेहूदी बातें करते हुए चौधरी पकड़े गए, जिसके बाद बीइए यानि ब्राडकास्टिंग एडीटर एसोसिएशन ने उन्हें बीइए के कोषाध्यक्ष पद से बेदखल कर उनकी एसोसिएशन की सदस्यता भी समाप्त कर दी। बहरहाल अब जी न्यूज और जिंदल ग्रुप दोनों ही इस मामले में अदालत में है।

अब ताजा मामला जाने माने न्यूज चैनल  "आज तक"  के मैनेजिंग एडीटर सुप्रिय प्रसाद का है। जो जानकारी अभी तक सामने आई है, उसके अनुसार इंडियन टेलीवीजन अवार्ड (आईटीए) के सिलसिले में सुप्रिय प्रसाद दिल्ली से मुंबई गए थे। दरअसल आज तक को लगातार 12 वीं बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी न्यूज चैनल घोषित किया गया था। इसी अवार्ड को लेने सुप्रिय मुंबई में थे। सर्वश्रेष्ठ न्यूज चैनल का अवार्ड लेने वाले मैनेजिंग एडीटर ने मुंबई में अपने ही चैनल की इंटरटेंटमेंट एडीटर रुक्मनी सेन के साथ अभद्र व्यवहार किया। उन्होंने जिस तरह का संवाद इस महिलाकर्मी के साथ किया, सभ्य समाज में उसे कत्तई जायज नहीं ठहराया जा सकता है। हालाकि ये विवाद का विषय हो सकता है कि जो बातें सुप्रिय ने अपनी महिला सहकर्मी रुक्मनी से की वो आमतौर पर "चलता" है।  लेकिन मैं इसे कत्तई जायज नहीं ठहरा सकता। महिलाओं के साथ अभद्रता की जो परिभाषा कोर्ट ने तय की है, उसके अनुसार तो अगर आप किसी महिला को बुरी नजर से देखते भर हैं तो आपके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है।

हां, बहुत से पढ़े लिखे और खासतौर पर टीवी वाले ये सवाल जरूर उठाते हैं कि ये तय कौन करेगा कि नजर बुरी थी या ठीक थी। कोर्ट को पहले ही पता था कि ऐसे बेतुके सवालों की आड़ में गंदगी करने वाले लोग बचने की कोशिश कर सकते हैं, लिहाजा कोर्ट ने साफ कर दिया कि महिला के बयान को ही सही माना जाएगा और पुरुष को ये साबित करना होगा कि उसने  महिला पर गलत नजर नहीं डाली थी। चलिए हम इस मामले को कोर्ट कचहरी से दूर आपस में बैठकर सुलझाने का रास्ता बताते हैं। मेरा मानना  है कि जो बातें और जिस अंदाज में आज तक के मैनेजिंग एडीटर ने अपनी महिला सहकर्मी के साथ की, अगर वही बातें उसी अंदाज में एडीटर साहब अपने परिवार की किसी भी महिला सदस्य के साथ करने की हिम्मत रखते हैं,  इसमें उन्हें किसी तरह की हिचक नहीं है, तो मैं उन्हें क्लीन चिट देता हूं, कि उन्होंने कोई गलत बात नहीं की।

बहरहाल दो लोगों के बीच ये बातचीत हुई है। महिलाकर्मी ने सार्वजनिक रूप से अपने एडीटर पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अभद्रता की है। सुप्रिय प्रसाद की फिलहाल कोई सफाई नहीं आई है। वैसे सच क्या है, ये तो खुद चैनल और सुप्रिय प्रसाद जानें। लेकिन कहा तो यहां तक जा रहा है कि "आज तक" से जब सुप्रिय ने पहली बार नौकरी छोड़ी थी, उस समय भी उन पर कुछ इसी तरह के गंभीर आरोप लगे थे। खैर रुक्मणि सेन ने न्यूज चैनल से इस्तीफा दे दिया है और उन्होंने आज तक  के मालिक अरुण पुरी को एक पत्र लिखकर पूरे मामले की जानकारी दी है। लीजिए आप भी पढ़ लीजिए ये पत्र।

Dear Mr Purie,
Supriya Prasad and I had a meeting yesterday regarding my resignation letter. The meeting ended up being very offensive and humiliating.
The conversation unfolded like this-

- So Are you leaving this job for that man?
- Where does he live?
- Oh I know because you changed your FB status!
- Why are you in a long distance relationship?
- Will you marry him?
- Boyfriend waala maamla bekaar hai.
- Oh but I am sure you have many boyfriends.
- Which number is this one?
- Will you never get married? Live like this? with many?

When I gave him the CD for anchors and mentioned the boy in the CD is good. He reacted with 'I have no interest in men'.
 Supriya Prasad has never been my friend. I have always been very professional with him. Kept my distance to be specific. He has dropped SBB left, right and centre.
 I was meaning to process what has happened and write to you. Now Arijit of HR calls me and tells me today is my last day. I don't have to serve my notice! Guess something has scared the organization deeply. Is it my sms to Supriya Pd? Is it my FB status?
 Will you take any action against him? Will you put him in a behaviour change workshop?
 Considering you re-hired a habitual offender guess this kind of behaviour is ok with you too??
 I will watch the action taken. I am not pleading. Not complaining. I am offended and I blame you and no one less for putting me through this feudal, uncouth, uncivilzed, masculine, priviledged and POWERFUL behaviour.
 Shame!!!!
Rukmini Sen
Editor (Entertainment) - Editorial TVTN
TV Today Network Ltd.
Videocon Tower,
E-1, Jhandewalan Extn.,
New Delhi-110055
+91-11- 23684878,23684888


चलिए कुछ और लोगों की भी बात कर ली जाए। इलेक्ट्रानिक मीडिया में गंदगी खबरों की सौदेबाजी और महिलाकर्मियों से अभद्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां शराब पीकर भी बहुत ड्रामेबाजी चलती है। चलिए आप शराब पीएं और सड़क पर ड्रामा करें, ये आपका व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन शराब पीकर आप हाथ में न्यूज चैनल का माइक कैसे पकड़ सकते हैं ? ये हुआ हिमांचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान। हिमांचल में चुनाव के दौरान कई न्यूज चैनल रोजाना चौपाल लगा रहे थे। जिसमें उम्मीदवारों के साथ ही स्थानीय लोगों के बीच लाइव बहस चल रही थी। मैने देखा कि एक नामचीन चैनल के जाने माने एंकर ने मंडी में शराब पीकर बहस की शुरुआत कर दी। वैसे तो पहाड़ में शाम होते ही ज्यादातर लोग  "टुन्न " हो जाते हैं, लेकिन कोई एंकर जो एक शो करने जा रहा है, वो  भला कैसे शो के पहले शराब पी सकता है ? बस टल्ली एंकर ने शुरू किया शो, पांच मिनट में हंगामा,  मारपीट हो जाने के बाद बीच में ही शो को खत्म करना पड़ गया। अब ऐसा भी नहीं है कि जब ये मामला हिमांचल के मंडी  में आम लोगों को पता हो, तो चैनल के जिम्मेदार लोगों को पता नहीं होगा। बहरहाल सच्चाई ये है कि एंकर  का नाम इतना बड़ा है कि चैनल के कर्ता धर्ता उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

जब चैनलों के बड़े-बड़े लोग ऐसा वैसा कर रहे हों तो भला छोटे कर्मचारी क्यों पीछे रहते। ब्लैकमेलिंग के एक ताजा मामले में पुलिस ने एबीपी न्यूज और इंडिया टीवी की एक रिपोर्टर के खिलाफ न्यायालय के आदेश पर मामला दर्ज किया है। इस मामले के खुलासे के बाद हालाकि एबीपी न्यूज ऩे अपने रिपोर्टर का कांट्रेक्ट फिलहाल स्थगित कर दिया है। इसके अलावा कुछ लोगों की जांच टीम बना दी है। वैसे क्या कहूं, लेकिन अब जांच टीम बनाने का  क्या मतलब है ? अब तो पुलिस भी जांच कर रही है और मामला न्यायालय में है तो कुछ दिन  में खुलासा खुद ही हो जाएगा। लेकिन मैं ये मानता हूं कि लोकतंत्र का ये चौथा स्तंभ भी चोरी चकारी से अछूता नहीं है। बात पेड न्यूज से बहुत आगे निकल चुकी है। हर चुनाव के दौरान  पत्रकारों की कारें कैसे बदल जाती हैं, कुछ लोग कैसे गृहप्रवेश करने लगते हैं, इन सब नजर रखने की जररूत है।

सब जानते  हैं  कि  सरकार ने जब भी मीडिया पर अंकुल लगाने की कोशिश की तो अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताकर उसका मीडिया समूहों ने पुरजोर विरोध किया,  लिहाजा कोई भी सरकार मीडिया को नियंत्रित करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। लेकिन एक के बाद एक जिस तरह के मामलों का खुलासा हो रहा है, ऐसे में अगर मीडिया संस्थानों ने अपने कर्मचारियों पर नकेल नहीं कसी तो लोकतंत्र के इस चौथे पाए के गले में भी घंटी बांधना सरकार की मजबूरी हो जाएगी। ब्राडकास्टिंग एडीटर एसोसिएशन को सिर्फ आर्थिक मामलों  तक खुद को सीमित नहीं रखना चाहिए,  बल्कि चारित्रिक और नैतिक मामलों में भी ठोस पहल करनी होगी। मुझे हैरानी हुई है कि जी न्यूज के मैनेजिंग एडीटर पर आरोप लगने के बाद उन्हें तत्काल एसोसिएशन से बाहर  कर दिया गया, जबकि उससे कहीं गंभीर आरोप आज तक के मैनेजिंग एडीटर पर है, लेकिन बीइए खामोश है। मुझे लगता है कि इस मामले में बीइए को खुद पहल कर ठोस कार्रवाई करनी होगी, जिससे बीइए की भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता पर आंच ना  आए।  
 
आप सभी मित्रों  को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ...

Saturday 3 November 2012

बिग बॉस बोले तो ख़ुराफातियों का बाप !


ये है बिग बास का घर। यहां कोई किसी का सगा नहीं। यहां सबके चेहरे तो असली है, लेकिन उनका किरदार नकली यानि बनावटी है। 24 घंटे इन सबके दिमाग में एक ही बात घूमती है कि कैसे साथी प्रतियोगियों को पटखनी देकर बिग बास की इनामी राशि पर हाथ साफ करे। अच्छा मजेदार बात ये है कि इन प्रतियोगियों से बात करें कि वो बिग बास के घर में क्यों आए हैं ? इसका जवाब सभी का लगभग एक सा है। मसलन ये सभी यहां कुछ सीखने आए हैं। भाई अगर वाकई कुछ सीखने आए हैं तो ये अच्छी बात है। लेकिन सीखने आना था तो साफ सुथरे, खुले मन और दिमाग भर लेकर आते। यहां घर में झूठ, मक्कारी, फरेब और घटियापन को अपने साथ लाने की भला क्या जरूरत थी ? वैसे भी जब दिमाग में कूड़ा भरा हो तो यहां सीखेंगे क्या ? मुझे तो कई बार लगता है कि इन घर वालों से तो पूछा ही जाना चाहिए कि इतने दिनों में कोई एक बात जो इन्होंने सीखी हो और घर के बाहर भी पूछ लिया जाए कि लोगों को इस शो से क्या सीखने को मिल रहा है।

बिग बास के घर में क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू कुछ दिन तक तो इस तरह बड़ी बड़ी बातें करते रहे, जैसे वो ही बिग बास के बाप हैं। हर बात में ज्ञान की लंबी लबी लफ्फाजी छोड़ते रहे। घर में मिलने वाले टास्क को वो गंभीरता से नहीं ले रहे थे, यहां तक की खेल के नियम यानि साप्ताहिक नामिनेशनकरने में उन्हें लग रहा था कि वो अपने धर्मविरुद्ध काम कर रहे हैं। बिग बास ने इसकी सजा जब सारे घर वालों को नामिनेट करके सुना दी, तो सिद्दू बैकफुट पर आ गए। उन्हें लग गया कि ऐसे तो घर में सब उनके खिलाफ हो जाएंगे। बस उन्होंने ऐलान कर दिया कि अब दो लोग मेरी नजर में आ गए हैं और मौका मिला तो नामिनेट करेंगे। बिग बास ने बुलाया और सिद्धू ने तड़ से दो नाम ले लिए। सिद्धू को सेवक बनाया गया तो उन्हें सेवक वाली लुंगी पहनने से इनकार किया, मालिक से पहले भोजन कर टास्क को फेल किया।

वैसे तो सिद्धू खुद कई बार ये बात कह चुके हैं कि बिग बास के घर में आने के लिए उनका परिवार रोक रहा था। लोगों ने पिछले पांच सीजन देखें है, उन्हें लग रहा था कि यहां का माहौल बड़ा गंदा होता है। सिद्धू का कहना है कि वो अपने परिवार से ये वादा करके आए हैं कि कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे उनकी इमेज पर बट्टा लगे। लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि खेल कुछ नियम कायदे होते हैं, वो तो आपको मानना ही होगा। लेकिन सिद्धू मनमानी कर रहे हैं, टास्क में हिस्सा नहीं ले रहे, जिससे एक बार तो घर का लक्जरी बजट भी शून्य हो गया। सिद्धू घर के भीतर जिस तरह खुद को प्रोजेक्ट कर रहे थे, उससे मुझे तो यही लग रहा था कि जैसे वो बिग बास के भी बाप हैं। लेकिन बिग बास ने भी सिद्धू को दिखा दिया कि घर में उनकी हैसियत क्या है, और बिग बास की क्या है।

बिग बास ने देखा कि सब घरवाले सिद्धू को सर का संबोधन करते हैं। इससे सिद्धू को लगता है कि घर के बिग बास वो ही हैं। बस बिग बास ने तय कर लिया कि सिद्धू को अगर समय रहते नहीं बता दिया गया कि ये एक खेल है और खेल में कोई बड़ा छोटा नहीं होता तो आगे और मुश्किल हो सकती है। बस फिर क्या था, बिग बास ने कैप्टन के चुनाव के नाम पर घर में वोटिंग करा दी। सिद्धू और डेलनाज के बीच हुए मतदान में सिद्धू को एक भी वोट नहीं मिला। मुझे लगता है कि सिद्धू को इसी से सीख लेना चाहिए कि एक घर में लोगों का दिल जीतना कितना मुश्किल काम है। दूसरे घर वाले तो सिद्धू को सर कहकर उनका दिल जीत चुके  है, पर क्या सिद्धू ने कभी घर वालो का दिल जीतने के लिए कुछ किया। मैने तो नहीं देखा कि वो ऐसा कुछ कर रहे हैं। हां बड़े क्रिकेटर रहे हैं, हम सब सम्मान करते हैं, लेकिन घर में वो ऐसा कुछ नहीं कर पाए हैं जिससे कहा जाए कि यहां वो फिट हैं।

मुझे तो कोई हैरानी नहीं होगी अगर सिद्धू नवंबर के आखिरी हफ्ते या उसके कुछ पहले किसी बहाने घर से बाहर चले जाएं। आप सबको पता है कि गुजरात में चुनाव चल रहा है। चुनाव के दौरान बीजेपी सिद्धू को चुनाव  प्रचार में इस्तेमाल करती है। भारत निर्वाचन आयोग में बीजेपी ने गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए जिन नेताओं के नामों की सूची सौंपी है, उसमें नवजोत सिंह सिद्धू का नाम शामिल है। वहां 13 और 17 दिसंबर यानि दो चरणों में मतदान होना है। ऐसे में कम से कम 15 दिन सिद्धू को वहां प्रचार करना पड़ सकता है। पार्टी को भी पता है कि इस वक्त सिद्धू बिग बास के घर में हैं। अगर उन्हें बाहर नहीं आना होता तो पार्टी उनका नाम आयोग ना भेजती। इसलिए मुझे तो लगता है कि नवंबर के आखिर सप्ताह में सिद्धू की किसी तरह बिदाई हो जाएगी।

गुलाबी गैंग की मुखिया संपत पाल और ब्यूटिशियन सपना भी यहां है। विचित्र करेक्टर है दोनों का। पहले बात कर लेते हैं कि सपना का। सपना ने पहले दो तीन दिन जिस तरह की बातचीत की, उससे तो लगा कि आने वाले समय में देश में वो एक आदर्श महिला की तस्वीर पेश करने वाली हैं। खुद महिला होकर उन्होंने महिलाओं के पहनावे को लेकर जिस तरह की बातें नेशनल टीवी पर की, वो बात तो मुझे ब्लाग पर लिखने में भी संकोच है। बहरहाल उनका कहने के मकसद यही था कि बिग बास चाहते हैं कि महिलाएं कम कपड़े पहने, भद्दे तरीके कमर मटकाएं। सपना ने ये बताने की कोशिश की कि वो ये सब नहीं कर सकतीं। लेकिन तीन दिन बाद ही सपना खुद 8 – 10 ग्राम कपड़ों में स्विंमिंग पूल में थीं। ये देखकर मुझे जरूर हैरानी हुई।


गुलाबी गैंग की मुखिया संपत के बारे में क्या कहा जाए। घर वालों ने उनके बारे में ठीक ही कहा कि वो एड़ा बनकर पेड़ा खा रही हैं। अंदर की बात तो ये है कि संपत ही नहीं खुद बिग बास को भी नहीं लगा था कि ये इतने दिनों तक यहां टिक पाएंगी। वैसे भी संपत पाल को 28 अक्टूबर को महिला सशक्तिकरण के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने विदेश जाना था। वो इस कार्यक्रम में जाने की बहुत इच्छुक भी थीं। लेकिन घर में ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई हैं कि निकलना मुश्किल हो गया है। पिछले दिनों शोर शराबे से लेकर बीमारी तक का जो कुछ भी नाटक उन्होंने किया, वो जानबूझ कर किया गया, जिससे अनुशासनहीनता में ही उन्हें बाहर कर दिया जाए। आईं थीं तो कहा कि वो महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ती हैं। लेकिन घर के बाहर हम जो देख रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि उनकी लड़ाई महिलाओं के खिलाफ ही चल रही है। घर में झूठ बोलकर भी वो फंस गईं। 

मेरी एक शिकायत तो वाकई बिग बास से है। शो में कैसे कैसे लोगों को शामिल किया जाता है। आमतौर पर लोग सेलेब्रेटी को चाहते हैं कि उनके रहन सहन को देखें, वो कैसे रहते हैं घर में। लेकिन बिग बास विवादित और राष्ट्रविरोधी काम करने वालों की यहां मार्केंटिंग कर रहे हैं। देश में संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है,  असीम उसे नेशनल टायलेट बताते हैं। जिस असीम सरकार ने जेल भेजा, उसे बिग बास ने सम्मान देकर अपने शो में शामिल कर लिया। इनके कार्टून में कसाब भारत के संविधान पर टायलेट कर रहा है, भारत माता को तिरंगा पहनाकर गैंगरेप की बात करने वाले को घर में जगह देकर बिगबास ने साबित  कर दिया है कि वो देश की बुराइयों का सौदा करते हैं। तलाकशुदा पति पत्नी को भीतर रखा गया है। कोशिश करते ऐसे दंपत्ति को घर में रखने की जिसने दुनिया में नाम कमाया है। खैर फिर यहां वो सब ना हो पाता जो हो रहा है। बहरहाल इसीलिए कहा ना कि ये है बिग बास का घर, यहां कोई किसी का सगा नहीं।

 वैसे आपको भी पता है कि इस घर में आने का मौका उसे ही मिलता है, जिसमें बिग बास को कुछ " खास " नजर आता है। आपको हैरानी होगी, लेकिन सच ये है कि एक बार इस घर में शामिल होने का न्यौता मुझे भी मिला था। मैं इंटरव्यू के लिए बिग बास के सामने बैठा। उन्होंने मेरा नाम पूछा, मैने नाम बताया। अगला सवाल था कि क्या आप ज्वाइंट फैमिली में रहते हैं ? मैने कहा हां, बिग बास को मेरा जवाब अच्छा नहीं लगा। फिर पूछा सड़क चलते आपकी किसी से कितनीदे बार तू-तू मै-मै हुई है, मैने बताया, मेरे साथ तो ऐसा नहीं हुआ। बस इतना कहना था कि बिग बास ने एक बहुत भद्दी सी गाली दी, मैं चौंक गया और मैं उन्हें ऊपर से नीचे तक देखता रह गया। मेरे मन में बिग बास को लेकर बहुत इज्जत थी, जो एक मिनट में खत्म हो गई। बहरहाल मैं आगे कुछ बात किए बगैर निकल आया।

बाहर मेरी मुलाकात हुई ऐसे शख्स से जिसे दो दिन बाद बिग बास के घर में होना था। मेरा लटका हुआ चेहरा देखकर उसने पूछा क्या हुआ। मैने उसे पूरी बात बताई तो वो हंसने लगा। बोला आप तो वाकई बेवकूफ हैं, ज्वाइंट फैमिली में रहने वाले का यहां क्या काम है? बताइये रास्ते चलते आप चीखेगे चिल्लाएंगे नही तो आपको आगे जाने का रास्ता कौन देगा ? इसके बाद भी बिग बास ने आपको गाली देकर अंतिम समय तक जागने का मौका दिया। अगर आप बिग बास के गाली देते ही..उनकी भी मां का साकी नाका....कर देते तो भी आपका चुना जाना तय था। चलिए कोई नहीं, आप केबीसी की तैयारी कीजिए, बिग बास से आपकी नहीं बनी तो क्या हुआ बिग बी से जरूर बनेगी।